लगन 

एक गांव में एक गरीब औरत अपने बेटे के साथ रहती थी उसके पति के गुजरने के बाद से वही उसकी देखभाल और लालन पालन करती थी। 



         वह घर घर जाकर बर्तन झाड़ू का काम करती ओर उन पीसो से अपना ओर अपने बेटे का पर भर्ती उसके बेटे को पढ़ने का बहुत लगन थी इसलिए उसने उसे स्कूल में दाखला दिलवा दिया ओर दोनों रहते थे।

         एक दिन वह औरत एक घर में काम कर रही थी ओर उसका बेटा वहीं घर में रखा अखबार पढ़ने लगा यह देख मालकिन बोली क्यों र अखबार पढ़ कर तू बहुत अमीर हो जाएगा है ओर ज़ोर ज़ोर से हसने लगी। 

        लड़के ने कहा मुझे बड़ा होकर कलेक्टर बनना इसलिए में अखबार से ज्ञान प्राप्त करते हूं  यह बात सुन मालकिन ज़ोर ज़ोर से हसने लगी ओर कहने लगी कलेक्टर ओर तू हा हा। 

        यह बात  उस औरत को अच्छी नहीं लगी ओर उसने अपने बेटे को बारहवी पास कर दिल्ली जाने को कहा। लड़का अब दिल्ली आ चुका था वह दिलो जान से पढ़ता लाइब्रेरी में घंटों तक वह किताब पढ़ता था। 

       एक दिन एग्जाम का समय आ गया ओर वह एग्जाम देने जा रहा था कि अचानक एक गाड़ी वाले ने उसका एक्सिडेंट कर दिया ओर उसके दाहिने हाथ ओर सिर में चोट आई ओर खून बेहने लगा मगर उस लड़के ने सोचा अगर में अस्पताल गया तो मेरे साल भर की मेहनत बेकार चली जाएगी ओर मेरी मा परिश्रम फिर उसने मेरे दाहिने हाथ में चोट लगी लेकिन बहिन हाथ तो बिल्कुल ठीक में इससे एग्जाम दूंगा।

         वह एग्जाम देने गया ओर एग्जाम देने के बाद इलाज करवाया ठीक होकर वह गांव आ गया रिजल्ट के दिन उसकी मां ने अखबार लेकर दिया ओर रिजल्ट देखने को कहा जब उसने रिजल्ट देखा तो वह खुशी से फूले नहीं समाए ओर कहने लगा मां में पास हो गया मां में कलेक्टर बन गया। 

        दोनों बहुत खुश हुए ओर खुशी खुशी रह ए लगे। अपनी लगन ओर मेहनत से वह कामयाब हो गया।

 वाणी से आदमी की पहचान

एक बार राजा शिकार पर निकले।साथ में मंत्री,हवलदार ओर सिपाही थे। जानवर का पीछा करते करते वह एक रास्ते से गुज़रे। रास्ते के किनारे एक नेत्रहीन साधु बैठा था।



        सिपाही आगे गया ओर पूछा अरे ओ साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने जवाब दिया - नहीं मैने नहीं सुनी सिपाही जी।

        सिपाही आगे निकल गया  फिर हवलदार आया ओर उसने साधु से पूछा क्यों साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने फिर वही जवाब दिया नहीं मैने नहीं सुनी।

हवलदार आगे बढ़ गया ओर मंत्री आया उसने साधु से पूछा सूरदास जी तुमने किसी के भागने कि आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं मंत्री हमने नहीं सुनी।

        मंत्री आगे चला गया ओर राजा आया ओर उसने साधु से पूछा - महाराज अपने किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं महाराज मैने नहीं सुनी मुझे क्षमा करे।

        राजा के आगे जाते एक आदमी जो दूर खड़ा यह सब देख रहा था साधु के पास आया और बोला साधुजी आप तो दृष्टिहीन है बिना देखे कैसे पहचान लिया की कौन सिपाही है, कौन हवलदार, कौन मंत्री ओर कौन राजा। साधु ने जवाब बेटा आदमी अपनी वाणी से अपनी पहचान बता देता देता है जो जितना बड़ा होता है उतना ही नम्र ओर विनय होता है ओर दूसरो का सम्मान करता है।