वाणी से आदमी की पहचान

 वाणी से आदमी की पहचान

एक बार राजा शिकार पर निकले।साथ में मंत्री,हवलदार ओर सिपाही थे। जानवर का पीछा करते करते वह एक रास्ते से गुज़रे। रास्ते के किनारे एक नेत्रहीन साधु बैठा था।



        सिपाही आगे गया ओर पूछा अरे ओ साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने जवाब दिया - नहीं मैने नहीं सुनी सिपाही जी।

        सिपाही आगे निकल गया  फिर हवलदार आया ओर उसने साधु से पूछा क्यों साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने फिर वही जवाब दिया नहीं मैने नहीं सुनी।

हवलदार आगे बढ़ गया ओर मंत्री आया उसने साधु से पूछा सूरदास जी तुमने किसी के भागने कि आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं मंत्री हमने नहीं सुनी।

        मंत्री आगे चला गया ओर राजा आया ओर उसने साधु से पूछा - महाराज अपने किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं महाराज मैने नहीं सुनी मुझे क्षमा करे।

        राजा के आगे जाते एक आदमी जो दूर खड़ा यह सब देख रहा था साधु के पास आया और बोला साधुजी आप तो दृष्टिहीन है बिना देखे कैसे पहचान लिया की कौन सिपाही है, कौन हवलदार, कौन मंत्री ओर कौन राजा। साधु ने जवाब बेटा आदमी अपनी वाणी से अपनी पहचान बता देता देता है जो जितना बड़ा होता है उतना ही नम्र ओर विनय होता है ओर दूसरो का सम्मान करता है।

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