हाईवे की चुड़ैल

सूरत के रहने वाले रमेश पिछले साल नवरात के दिनों में कार ले कर अपने दोस्त दीपक के साथ सूरत से आष्टा आ रहे थे। रात के दो बजे होने के कारण रास्ता काफी सुनसान था।



      अचानक गाड़ी से करीब 100 मीटर की दूरी पर एक खूबसूरत औरत लिफ्ट मांगने का ईशारा करते नज़र आई।

       रमेश गाड़ी चला रहा था जबकि दीपक उसके बगल में बैठा था। औरत को देखते ही रमेश ने गाडी धीरे करने लगा…इसपर दीपक ने उसे टोका कि आजकल हाईवे पर इस तरह से गाड़ी रुकवाकर लूट-पाट की जा रही है। इसलिए तुम गाड़ी मत रोकना। गाड़ी चलाने दो।

       मगर रमेश ने गाड़ी ले जाकर उस औरत में पास रोक दी

और पूछा की आपको कहा जाना है, तो उस औरत ने जवाब दिया आष्टा।

       रमेश ने पीछे वाली सीट पर उसे बैठा लिया।

कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य रहा पर अचानक ही पीछे से उस औरत के हंसने की आवाज़ आने लगी।

      दीपक ने मुड़ कर के देखा तो उसके होश उड़ गए…और उसकी चीख निकल पड़ी।

      वो औरत दरअसल एक चुड़ैल थी…. उसने अपने लम्बे-लम्बे बाल आगे की तरफ झुका रखे थे…जिनके बीच से उसकी चमकती हुई डरावनी आँखें दिखाई दे रही थीं… उसके नाख़ून चाक़ू की तरह लम्बे थे और शरीर पर  मर्दों की तरह बाल थे। 

    चीख सुनकर रमेश ने फ़ौरन ब्रेक लगा दिया और गाड़ी खड़ी कर कूद कर भागने लगा।

      दीपक ने भी यही करना चाहा…लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उसके साइड का दरवाजा नहीं खुला….कुछ देर बाद जब रमेश कुछ गाँव वालों को लेकर गाड़ी के पास पहुंचा तो वहां सिर्फ गाड़ी खड़ी थी।

      इस घटना के बाद दीपक का कभी कोई पता नहीं चला। रमेश भी कुछ दिनों बाद अचानक से बीमार पड़ गया और उसकी मृत्यु हो गयी।

पुलिस की तफ्शीश में पता चला कि उस इलाके में हर साल उसी दिन के आस-पास इस तरह की एक घटना घटती है। जिसकी वजह आज तक कोई नहीं समझ पाया।

  बीरबल की ठंडी हवा 

गर्मी का समय थे राजा अकबर अपने दरबार में बैठे थे गर्मी से सबका बुरा हाल था। राजा ने अपने सभी वाजीरो ओर जानकारों से कहा कि जो कोई भी बगीचे की ठंडी हवा महल में लेकर आयेगा उसे एक हज़ार स्वर्ण मुद्रा इनाम में दी जाएंगी।

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         इस बात की घोषणा पूरे राज्य में करवा दो हमे केवल दो दिन में जवाब चाहिए। मंत्री ने ढिंढोरा पिटवाकर पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि जो कोई भी बगीचे की ठंडी हवा महल में लेकर आयेगा उसे एक हज़ार स्वर्ण मुद्रा इनाम में दी जाएंगी।

          इस बात की चर्चा पूरे राज्य में फेल गई ओर सब सोच विचार में पढ़ गए की बगीचे कि हवा महल में कैसे ले जाए। दो दिन बाद दरबार में सभी उपस्थित हुए लेकिन सबके चेहरे मुरझाए हुए थे राजा पूछा लाया कोई बगीचे कि ठंडी हवा मगर सबने अपनी गर्दन झुका ली तभी पीछे से आवाज़ आई महाराज आपकी हवा तौयार है।

          बीरबल अपने साथ बड़े बड़े पंखे इत्र, गुलाब जल, खसखस  से भीगे हुए थे जब बांधिए तो उनसे हवा की तो पूरे महल में  ठंडी ओर महकदार हवा फेल गए। यह देख सभी हैरान रह गए ओर राजा बहुत खुश उन्होंने इनाम की मुद्रा बीरबल को से दी।

 अच्छाइयां ओर बुराईय

         एक चौराहे पर तीन यात्री मिले तीनों के कंधे पर दो झोले आगे ओर पीछे लटके हुए थे। पहले यात्री ने अपनी पीछे के झोले में कुटुंबियों ओर उपकारी मित्रो की भालाईया भर रखी थी ओर सामने के झोले  के झोले में लोगो की बहुत सारी बुराइयां थी। पीछे के झोले पर उसकी नजर नहीं जाती थी ओर दूसरो कि बुराइयां उसके सामने थी वह सदा उन्हें देख कर चलता ओर मन ही मन कुढ़ता रहता।



          दूसरा यात्री ने अपने आगे के झोले में अपनी सारी अच्छाइयां लटकाई थी जिन्हें देख कर वह अपनी सराहना करता ओर बहुत खुश होता। पीछे के झोले में उसने अपनी बुराइयां लटकाई थी जिसपर उसकी कभी निगाह नहीं जाती थी। दूसरो को दिखाना नहीं चाहता था। पहले यात्री ने कहा- लेकिन दूसरो को तो तुम्हारी ये बुराइयां नजर आती है  तुम देखो या ना देखो। 

          दोनों यात्री ने तीसरे यात्री से पूछा के तुम्हारे इं आगे ओर पीछे के झोले में क्या है आगे का झोला तो काफी भारी दिख रहा है तो तीसरे यात्री ने जवाब दिया मेरे आगे के झोले में दूसरे लोगो की अच्छाइयों भलाइयों और गुणों को भर रखा है में इन्हे को सामने देख कर चलता हूं ओर मेरे पीछे के झोले में मैने दूसरो के बुराइयां भर रखी हे जिन्हें में कभी नहीं देखता ओर नीचे एक छेद कर रखा है जिससे वह बुराइयां गिर जाती है जिन्हे में भूल जाता हूं।

           उन दोनों यात्री ने कहा तुम इतना भोज लेकर क्यों चलते हो फेक दो इन्हे इससे कुछ नहीं होगा तो उसने जवाब दिया कि  इससे मुझे आगे बढ़ने का उत्साह मिलता ओर दूसरो के गुण नजर आते है जिससे मुझे काफी मदद मिलते है।

लगन 

एक गांव में एक गरीब औरत अपने बेटे के साथ रहती थी उसके पति के गुजरने के बाद से वही उसकी देखभाल और लालन पालन करती थी। 



         वह घर घर जाकर बर्तन झाड़ू का काम करती ओर उन पीसो से अपना ओर अपने बेटे का पर भर्ती उसके बेटे को पढ़ने का बहुत लगन थी इसलिए उसने उसे स्कूल में दाखला दिलवा दिया ओर दोनों रहते थे।

         एक दिन वह औरत एक घर में काम कर रही थी ओर उसका बेटा वहीं घर में रखा अखबार पढ़ने लगा यह देख मालकिन बोली क्यों र अखबार पढ़ कर तू बहुत अमीर हो जाएगा है ओर ज़ोर ज़ोर से हसने लगी। 

        लड़के ने कहा मुझे बड़ा होकर कलेक्टर बनना इसलिए में अखबार से ज्ञान प्राप्त करते हूं  यह बात सुन मालकिन ज़ोर ज़ोर से हसने लगी ओर कहने लगी कलेक्टर ओर तू हा हा। 

        यह बात  उस औरत को अच्छी नहीं लगी ओर उसने अपने बेटे को बारहवी पास कर दिल्ली जाने को कहा। लड़का अब दिल्ली आ चुका था वह दिलो जान से पढ़ता लाइब्रेरी में घंटों तक वह किताब पढ़ता था। 

       एक दिन एग्जाम का समय आ गया ओर वह एग्जाम देने जा रहा था कि अचानक एक गाड़ी वाले ने उसका एक्सिडेंट कर दिया ओर उसके दाहिने हाथ ओर सिर में चोट आई ओर खून बेहने लगा मगर उस लड़के ने सोचा अगर में अस्पताल गया तो मेरे साल भर की मेहनत बेकार चली जाएगी ओर मेरी मा परिश्रम फिर उसने मेरे दाहिने हाथ में चोट लगी लेकिन बहिन हाथ तो बिल्कुल ठीक में इससे एग्जाम दूंगा।

         वह एग्जाम देने गया ओर एग्जाम देने के बाद इलाज करवाया ठीक होकर वह गांव आ गया रिजल्ट के दिन उसकी मां ने अखबार लेकर दिया ओर रिजल्ट देखने को कहा जब उसने रिजल्ट देखा तो वह खुशी से फूले नहीं समाए ओर कहने लगा मां में पास हो गया मां में कलेक्टर बन गया। 

        दोनों बहुत खुश हुए ओर खुशी खुशी रह ए लगे। अपनी लगन ओर मेहनत से वह कामयाब हो गया।

 वाणी से आदमी की पहचान

एक बार राजा शिकार पर निकले।साथ में मंत्री,हवलदार ओर सिपाही थे। जानवर का पीछा करते करते वह एक रास्ते से गुज़रे। रास्ते के किनारे एक नेत्रहीन साधु बैठा था।



        सिपाही आगे गया ओर पूछा अरे ओ साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने जवाब दिया - नहीं मैने नहीं सुनी सिपाही जी।

        सिपाही आगे निकल गया  फिर हवलदार आया ओर उसने साधु से पूछा क्यों साधु किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी तुमने। साधु ने फिर वही जवाब दिया नहीं मैने नहीं सुनी।

हवलदार आगे बढ़ गया ओर मंत्री आया उसने साधु से पूछा सूरदास जी तुमने किसी के भागने कि आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं मंत्री हमने नहीं सुनी।

        मंत्री आगे चला गया ओर राजा आया ओर उसने साधु से पूछा - महाराज अपने किसी जानवर के भागने की आवाज़ सुनी। साधु ने जवाब दिया नहीं महाराज मैने नहीं सुनी मुझे क्षमा करे।

        राजा के आगे जाते एक आदमी जो दूर खड़ा यह सब देख रहा था साधु के पास आया और बोला साधुजी आप तो दृष्टिहीन है बिना देखे कैसे पहचान लिया की कौन सिपाही है, कौन हवलदार, कौन मंत्री ओर कौन राजा। साधु ने जवाब बेटा आदमी अपनी वाणी से अपनी पहचान बता देता देता है जो जितना बड़ा होता है उतना ही नम्र ओर विनय होता है ओर दूसरो का सम्मान करता है।

खेलों ओर बेलो

एक गांव में दो बहनें रहती थीं। एक का नाम खेलों ओर दूसरी का नाम बेलो था ओर उनके साथ उनके चाचा रहते थे जिन्हें वह चाचा मुराद कहती थीं।


           एक दिन उनके चाचा ने कहा खेलों बेलो देखो सब अपने घर को कितना साफ सुथरा रखते है तुम भी रखा करो। दूसरे दिन वह काम से खाना खाने आए तो देखा के पूरे घर में कीचड़ हो रहा है उन्होंने पूछा ये इतना कीचड़ क्यों हो रहा है तो दोनों बहनों ने जवाब दिया कि अपने ही तो कहा था कि साफ सुथरा रखा करो तो अपने दीवारों को धोकर साफ कर दिया चाचा मुराद गुस्सा कर के चले गए। 
           एक दिन बाज़ार में तमाशा देखने के लिए सब जा रहे थे तो चाचा मुराद ने कहा खेलों बेलो तुम भी आ जाना लेकिन दरवाज़े का भरोसा मत करना ओर चाचा मुराद चले गए। दोनों बहनों ने दरवाज़े का एक एक पट उखाड़ लिया ओर उसे लेकर तमाशा देखने चली गई अब लोगो वहा पर तमाशा कम ओर उन दोनों को ज़्यादा देखने लगे जब चाचा ने देखा तो उन्हें घर ले जाकर डांटा और कहा ये क्या करा, दरवाजा की क कह कर गया था, तो दोनों बहनों ने जवाब दिया कि तुमने ही तो कहा था दरवाज़े का भरोसा मत करना। 
          कुछ दिन गुजर गए थे एक दिन चाचा मुराद ने कहा में काम से बाहर जा रहा हूं थोड़े दिन में लौट अयुंगा अगर जरूरत पढ़े तो किसी से किलो आधा किलो लेकर खा लेना आकर में वापिस कर दूंगा।
          दो तीन दिन बाद घर में सामान खत्म हो गया दोनों पड़ोसियों के गहर किलो आधा किलो के बाट ले अयी ओर उन्हें चूल्हे पर चढ़ा दिया। लोहे के बाट भी गलते है क्या खेर काफी देर हो गई जब बाट नहीं गले तो दोनों ने उसके पानी से ही काम चला लिया इसी तरह चार दिन गुजर गए लेकिन बाट नहीं गले उसी दिन चाचा भी आ गए और उन्होंने खाना मांगा तो वह एक प्लेट में दो बाट ओर थोड़ा पानी ले आई और चाचा को दे दिया चाचा ने देखा तो कहा ये क्या है, तो दोनों बहनों ने जवाब दिया अपने ही तो कहा था किलो आधा किलो लेकर खा लेना तो हमने ले लिए लेकिन ये गलते ही नहीं।
         चाचा मुराद ने दोनों को बहुत चिल्लाया ओर घर से बाहर निकाल दिया अब दोनों ने सोचा क्या करे तो उन्होंने कहा चल बेटी के यहां चलते है वह राजमहल में अपनी अच्छी सेवा करेगी। दोनों बेटी के यह गई, नोकर ने बेटी को बताया की आपकी मा मिलने आई है तो बेटी ने सोचा अगर उनको महल में रखा तो ये बहुत बेज्जती करवाएंगी, बेटी ने नोकर से कहा उन्हें भैंसो के तबेले में रुकने को कहो ओर में खाना ओर कपड़े दे रही हूं उन्हें दे देना।
          दोनों बहने खाना देख बहुत खुश हुई ओर कपड़े भी पहन लिए अब अधी रात को एक भैंस मूतने लगी तो खेलों कि नींद खुल गई ओर उसने बेलो को उठाया ओर कहा की बेलो देख लगता है भैंस का पेट फूट गया है। दोनों बहनों ने कपड़े उतार कर उसके पेट से बांध दिए थोड़ी देर बाद भेंस ने मूत लिया ओर बैठ गई। सुबह जब नोकर भैंस खोलने आया तो आया तो दोनों बहनों ने कहा भईया अंदर मत आना हमने कपडे नहीं पहने है जाकर बेटी से कहना के कपडे भेजे क्यूंकि रात को भेंस का पेट फूट गया था तो हमने कपड़े बांध कर उसके पेट को रोका।
           जब बेटी को नोकर बताया तो उसने कहा ठीक है ये सोने, ओर हीरे जवारत उन्हें दे देना ओर कहना यहां से चली जाए। नोकर ने उन्हें हीरे जवारत दिए ओर दोनों वहा से निकल गई। खेलों ने कहा बेलो देख बेटी ने भी निकाल दिया ओर उपहार दिया तो ये रेत ओर कंकर चल इसे नदी किनारे दबा कर घर चलते है दोनों ने उन्हें नदी किनारे दबा दिया ओर घर चली गई जब उन्होंने यह सब चाचा मुराद को बताया तो वह समझ गए कि बेटी ने रेत कंकर नहीं हीरे जवारात दिए होंगे। 
         चाचा ने पूछा तुमने वह कहा दबाया चलो मुझे लेकर चलो जब चाचा वहा पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वो हीरे ओर जवरात है। चाचा ने उन्हें निकाल लिया ओर तीनों आराम से रहने लगे।

               



                       सिंड्रेला


        एक राज्य में एक सिंड्रेला नाम की एक लड़की रहती उसकी सौतेली मां ओर एक सौतेली बहन थी वह उस पर बहुत अत्याचार करती थी।
         एक दिन सिंड्रेला अपने पापा की तस्वीर के सामने रो रही थी ओर के रही थी पापा आप मुझे छोड़ कर क्यों चले गए आपके बिना में अकेली हो गई हूं पापा, लेकिन में हिम्मत नहीं हरूंगी पापा में आपकी प्यारी बेटी हूं।
         सिंड्रेला के पास एक जादुई आईना था जो उसकी सौतेली बहन ने छीन लिया था उसकी बहन हमेशा उस आइने से पूछती, है आइने बताओ सबसे सुंदर कोन है ओर आईना हमेशा एक ही जवाब देता की सिंड्रेला सबसे खूबसूरत है यह सुन सिंड्रेला की बहन को बहुत गुस्सा आता ओर वह सरा गुस्सा सिंड्रेला पर उतारती थी।


         एक दिन सिंड्रेला बाहर गई थी,  उसे वहा एक जादूगरनी मिली उसने कहा में तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी ओर जादूगरनी ने जैसे ही छरी घुमाई सिंड्रेला एक सुंदर राजकुमारी बन गई ओर जादूगरनी ने कहा अब तुम जाओ लेकिन एक बात का ध्यान रखना बारह बजे से पहले तुम वापस आ जाना।
         सिंड्रेला राजकुमार के महल चली गई ओर राजकुमार को वह बहुत पसंद आई दोनों ने डांस किया  तभी बारह बज गए ओर सिंड्रेला वहा से जाने लगी लेकिन सीढ़ियों पर उसका एक जूता गिर गया जो राजकुमार ने उठा लिया और पूरे राज्य में घोषणा करवा दी के जिस के भी पैर में यह जूता आयेगा उसकी शादी राजकुमार से होगी राज्य कि सभी लड़कियों की लाइन लग गई लेकिन किसी के भी पर में वह जूता नहीं आया था।
         राजकुमार के सिपाही ने कहा राजकुमार एक घर बचा हे वहा से कोई नहीं आया क्यों ना हम वहा चल कर देखे, राजकुमार वहा पहुंचे तो पहले सिंड्रेला की बहन ने वह जूता पहना लेकिन वह उसको छोटा पड़ गया ओर फिर जब सिंड्रेला ने पहना तो सबकी आंखें फट गई क्यूंकि सिंड्रेला को वह जूता बिल्कुल ठीक तरह से आ गया था ओर सिंड्रेला की शादी। राजकुमार के साथ हो गई ओर वह खुशी खुशी रहने लगी।


                             डिब्बा वाला
एक शहर में एक डिब्बा वाला रहता था वह बहुत गरीब था। वह लोगो के घर से नाश्ते के डिब्बे ओर खाने के डिब्बे लेकर उन्हें स्कूल, कारखानों ओर दुकानों पर पहुंचाने का काम करता था ओर एक डिब्बा पहुंचाने का दस रुपया लेता था ओर उससे अपने घर का खर्चा ओर अपने लड़के को अच्छे स्कूल में पढ़ाता था ओर अपने लड़के से कहता बेटा  पढ़ लो वरना एक दिन मेरी तरह ये सब करना ना पड़े।


       जिस स्कूल में डिब्बा वाला का लड़का पड़ता था उस स्कूल में भी वह डिब्बा पहुंचाता था। डिब्बा वाले के यह मेहनत देख उसके लड़के बहुत बुरा लगता ओर वो दिल लगा कर पढ़ता  ताकि वह अच्छा व्यापार कर सके। एक दिन डिब्बा वाले के लड़के ने देखा कि बहुत तेज़ बारिश हो रही है लेकिन फिर भी उसके पिता डिब्बा पहुंचाने का काम कर रहे हैं उसे यह देख बहुत दुःख हुआ।
       एक दिन डिब्बा वाला अपने कमरे में बैठा था तभी वहा उसका लड़का आ गया ओर कहने लगे पापा मुझे आपसे एक बात करनी हे, डिब्बे वाले ने कहा बोलो क्या बात है तो लड़के पापा आप इस तरह मेहनत करती हो क्यों ना आप एक पेपर पर लिखो के यह काम मिलता है ओर आप बहुत सारे लोगों को इकठ्ठा कर एक डिब्बे पहुंचाने का काम दूर दूर तक कर सकते है ओर उनसे कहना जो मुनाफा होगा उसमे से आधा उनका इस तरह लोगो को रोज़गार भी मिल जाएगा।
       डिब्बा वाला के बेटे की यह तरकीब काम कर गई उन्होंने वैसा ही किया ओर धीरे धीरे उनका कारोबार पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गया ओर वह भी एक धनी व्यक्ति बन गया ओर अब उसका लड़का भी अपनी पढ़ाई अच्छे से करने लगा।
मालिनी
   एक गांव में एक लड़की अपनी मां के साथ रहती थीं जिसका नाम मालिनी था। एक दिन मालिनी को लड़के वाले देखने आए वह लोग शहर से आए थे ओर काफी पढ़े लिखे लग रहे थे  उन्होंने  मालिनी को पसंद कर लिया ओर कहा हमे दहेज में एक भी रुपया नहीं चाहिए आप बस जल्द से जल्द शादी करवा दे, कुछ दिन बाद मालिनी कि शादी हो गई ओर वह अपने ससुराल चली गई।
Malini
Hindi story malini

        सुबह के चार बजे मालिनी की सास ने उसे आवाज लगाते हुए अरे ओ बहू ज़रा घर की झाड़ू तो लगा दो, मालिनी आंख मलते हुए बाहर आई और कहने लगी मा जी अभी तो सुबह के चार बजे है ल। मालिनी की सास ने चिल्लाते हुए कहा अरे तो क्या चार बजे सुबह नहीं होती है, हम गांव की लड़की लाए ही इसलिए है की जल्दी उठकर सारा काम करदे वरना मेरे बेटे के लिए लड़की की कोई कमी है।
       मालिनी कुछ नहीं बोली और सारा काम करने लगी। कुछ दिन बाद मालिनी की मां का फोन आया तो उसने बताया की उसकी तबीयत बहुत खराब है ओर वो उससे मिलना चाहती है। मालिनी ने अपनी सास से पूछा तो सास ने अरे तू चली जाएगी तो घर का काम को करेगा ओर वैसे भी तेरी कोई मर थोड़ी गई है।
        एक दिन मालिनी का पति एक लड़की को घर लेकर आया ओर कहने मां ये आज से मेरे साथ रमेरे कमरे में रहेगी ओर मालिनी तुम अपना बेड गेस्ट रूम में लगा लो। मालिनी ने कहा मगर एक पत्नी के होते हुए आप किसी और औरत को कैसे रख सकते है।
       मालिनी के पति ने कहा अगर तुझे इतनी परेशानी है तो निकल जाओ इस घर से, मगर मालिनी ने कहा आओ जैसा कहेंगे वैसा ही होगा मगर मुझे इस घर से ना निकालो में घर का सरा काम कर लूंगी। मालिनी को पेंटिंग का बहुत शौक था इसलिए वह पेंटिंग किया करती थी। एक दिन मालिनी ने ज़हर खा लिया लेकिन वह बच गई  जब यह बात उसकी मां को पता चली तो वहा आ गई ओर कहने लगी बेटा मालिनी तू यह सब झेल रही एक बार अपनी मां को बोल देती तो में तुझे यहां से कब की ले गई होती। 
     मालिनी की सास ने कहा ले जाओ इसे यह से हम इसे एक पल भी इस घर में नहीं रख सकते। मालिनी की मां ने कहा हम तुम पर मुकदमा दायर करेंगे लेकिन मालिनी ने माना कर दिया ओर पेंटिंग उठा कर वहा से निकाल गई। रास्ते में चलते चलते वह थक कार किनारे लगी कुर्सी पर बैठ गई, तभी वहा एक कार आकर रूकी ओर ओर कार से एक आदमी ने पूछा कि ये पेंटिंग कितने की है।
     मालिनी की मां ने कहा साहब मेरी बेटी ने ये पेंटिंग शोक के लिए बनाई थी मगर अब उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया है इसलिए आप इस पेंटिंग का जो सही दाम समझे वो देदे, तो उस कार वाले ने कहा पास ही में मेरी अर्ट गैलरी है आप मेरे घर चले वहा आप पेंटिंग बनाना ओर हम उसे ऊंचे दाम पर बेचेंगे।
      मालिनी सुंदर - सुंदर पेंटिंग बनाती, धीरे धीरे उसकी पेंटिंग पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गई एक दिन मालिनी कि तस्वीर अखबार में छपी तो मालिनी के पति ने वो फोटो देखी ओर अपनी मां से कहा देखो मां अलिनी की फोटो अखबार में छपी है ओर देखो वह कितनी अमीर हो गई है, चलो हम उसे घर ले आते है।
     जब वह मालिनी को लेने पहुंचे तो मलिनिं ने कहा मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, मालिनी की सास ने कहा तो चलो घर वहा अच्छे से एहसास करना। मालिनी ने कहा मां जी मुझे इस बात का एहसास हो गया कि में ज़हर क्यों खाया जबकि इतना अच्छा भविष्य मेरी रह देख रहा था। हार कर मालिनी का पति ओर सास चले गए। अब मालिनी अपना जीवन सुखी से कांट रही थी।












बुद्धिमान बहू
एक गांव में एक रमेश नाम का आदमी अपनी पत्नी और अपनी मां के साथ रहता था। रमेश की मां हमेशा से अपनी बहू को नापसंद करती थी।


     एक दिन रमेश की पत्नी बेसन के लड्डू बना रही थी। लड्डू देख रमेश की मां के मुंह में पानी आ गया। लेकिन वह नाटक ऐसा कर रही थी जैसे उसे लड्डू पसंद ही नहीं हो, रमेश काम से लौटा तो उसकी मां उसे देख कर झुटा नाटक करने लगी ओर रमेश से कहने लगी देखा बेटा तेरी पत्नी को मुझे मारने पर तुली है, देखो इसे पता है कि मुझे सुगर है फिर भी मेरे लिए लड्डू बना रही है।
      रमेश ने अपनी  पत्नी को थोड़ा डांटते हुए कहा मगर उसकी पत्नी ने उफ्फ भी नहीं किया ओर कहने लगी, अरे जी ये तो मेथी के लड्डू है मां के लिए बहुत फायदेमंद है।    
      रमेश की मां की यह तरकीब काम नहीं आई तो उसने अपनी बहन छोटी को बुला लिया जब छोटी आई तो रमेश की पत्नी ने उसका बहुत अच्छा स्वागत किया ओर उनके लिए गाजर का हलवा ओर पूरी बनाई यह देख मौसी बहुत खुश हुई।
       रात को जब रमेश की मां ओर मौसी बैठ कर बाते कर रही थी तो रमेश की मां ने मौसी को बताया के उन्होंने उसे क्यों बुलाया दोनों के बीच बातें हुई ओर उन्होंने बहू को घर से निकालने का प्लान बनाया।
       उनके घर में एक स्टोर रूम था जो हमेशा बंद रहता था ओर किसी को वहा जाने की अनुमति नहीं थी। सुबह मौसी रमेश की पत्नी के पास गई और बोली बेटा तुमरी सास के सपने में उनकी सास की आत्मा अयी थी ओर उन्होंने कहा कि, उन्हें तुम्हारा यहां रहना पसंद नहीं है ओर अगर तुम रमेश को ओर इस घर को छोड़ कर नहीं जाओगी तो वह तुम्हारी जान ले लेगी उनकी आत्मा स्टोर रूम ही रहती है ऐसा उन्होंने कहा था यह बोल कर मौसी चली गई।
       रात को जब रमेश आया तो उसकी पत्नी ने पूछा आ गए आप टिकट मिली क्या? यह सुनकर रमेश की मां ने पूछा कैसी टिकट, बहू तुम कहीं जा रही हो क्या, रमेश की पत्नी बोली में नहीं आप ओर मौसी जा रहे तीर्थ यात्रा पर ओर वी भी तीन महीने के लिए। यह सुन वह भौचक्की रह गई ओर मौसी ने हिकिचाते हुए कहा बेटा वो तुम, तुम्हारी जान, खतरा रमेश को सामने वह सही से बोल नहीं पाई।   
      रात को दोनों तीर्थ यात्रा की तैयारी कर रही थी तो मौसी ने कहा तेरी बहू तो बहुत बुद्धिमान है उसने हमारी चाल हम पर ही चल दी मगर एक बात तुझे माननी पड़ेगी कि उससे अच्छी ओर नेक बहू तुझे कहीं नहीं मिल सकती रमेश की मां को अपनी गलती का एहसास हो गया।
      इधर रमेश की पत्नी कमरे में बैठे सोच रही थी कि क्या होता अगर में उनकी वह बात नहीं सुनती तो, आज में डर्र से रमेश जी ओर इस घर को छोड़ कर चली जाती।
जंगल के दोस्त
     एक जंगल  में चार दोस्त रहते थे। एक चूहा, एक खरगोश, एक हिरण ओर एक कोवा चारो बहुत अच्छे दोस्त थे। वह एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे। 
     एक दिन कोवा ने कहा, बहुत हो गए हम लोग कही घूमने ही नहीं गए क्यों ना कल तालाब किनारे पिकनिक मनाए। इस बात पर सब राज़ी हो गए, हिरण ने अच्छा खाना बनाया ओर दूसरे दिन सब घूमने निकल गए सब बैठे हुए खाना का रहे थे। तभी हिरण बोला मैने बहुत खा लिया में थोड़ा टहल कर आता हूं। 
      हिरण टहलने चला गया जब बहुत देर हो गई ओर हिरण ने आया तो तीनों दोस्त उसे ढूंढने निकल गए। तभी उन्हें हिरण के चिल्लाने की आवाज़ आयी, सब वहा पहुंचे तो उन्होंने देखा के हिरण को शिकारी ने कैद कर लिया है ओर वह जाल में फांस गया है।


       यह देख तीनों उदास हो गए ओर हिरण को बचाने की तरकीब लगाने लगे तभी खरगोश बोला कि में ओर कोवा शिकारी का ध्यान बाटाएंगे जब तक चूहा जाल काट कर हिरण को बचा लेगा। कोवा ज़ोर ज़ोर चिल्ला कर शिकारी को परेशान करने लगा जिससे उनका ध्यान कोवा के इधर चला गया ओर खरगोश इधर उधर कूदने लगा तब तक चूहे ने जाल काट दिया ओर हिरण को बचा कर ले आया और सब जंगल कि तरफ भाग गए। अच्छे दोस्तों के साथ से  हिरण बच गया।


दहेज प्रथा
         एक गांव में एक गरीब किसान रहता था। किसान का एक बेटा ओर एक बेटी थी। वह दिन रात मेहनत करता था ओर अपने परिवार का लालन पालन करता था। धीरे धीरे दिन गुजरने लगे अब उसकी लड़की बड़ी हो गई थी।
         अब किसान को अपनी बेटी की शादी की समस्या सताने लगी दिन रात वह बस यही सोचता के बेटी के ब्याह के लिए में इतने रुपए कहा से लाऊंगा। उसने जो कुछ था उसी से उसकी बेटी की शादी करदी।


         शादी के बाद जब वह ससुराल गई तो सास नन्द उसे ताहने देती ओर उसके साथ बुरा सलूक करती ओर जब वह अपने पति से कहती तो उसका पति उसे यह कहकर बहुत मारता के तेरे बाप ने दहेज में क्या दिया। एक दिन किसान अपनी बेटी के घर गया तो उसने देखा कि उसका पति उसे मार रहा ओर जब लड़की ने उसे देखा तो ऐसा नाटक करने लगा जैसे उसने कुछ देखा नहीं हो लेकिन वह अंदर ही अंदर रो रहा था।
           कुछ दिन बाद किसान ने अपनी बेटी को हार दिया क्यूंकि वह मां बनने वाली थी। लेकिन किसान के जाते ही वह हार उस लड़की की नन्द ने छीन लिया। जब रात को उसने पति से बोला तो पति ने उसे गर्भावसथा में भी खूब मारा जिसके कारण उसका पेट में पल रहा बच्चा दुनिया में आने से पहले ही चला गया। 
            अब वह यह सेहेन कर के थक चुकी थी इसलिए उसने यह से भागने की योजना बनाई लेकिन ससुराल वालो को यह बात पता चल गई ओर उन्होंने उसे कमरे में बंद कर दिया। लड़की की सास ने कहा कि ये हमारे किसी काम की नहीं है, क्यों ना इसे चंपा बाई के यहां बेच दिया जाए।            
            लड़की का पति उसे चंपा बाई के यहां ले के गया वह बहुत रोई गिड़गिड़ाई मगर वह नहीं माना ओर उसे वहा छोड़ कर चला गया। अब वह ज़िंदा लाश की तरह जी रही थी लेकिन एक लड़का वहा आया ओर उसे जब उसके बारे में पता चला तो उसे बहुत अफसोस हुआ ओर उसने उसकी मदद की, दोनों ने मिल कर प्लान बनाया ओर प्लान के मुताबिक लड़की ने अपने ससुराल वाले को मिलने को बुलाया जब सब वहा पहुंचे तो उसने कहा माझी आप जैसा कहेंगी में वैसा करूंगी मगर आप मुझे यह से चलो मगर सास ने उसके साथ वहीं सलूक किया ओर पति ने उसे मारा यह सब वह लड़का कैमेरा में केद कर लिया ओर फिर दोनों ने मिल कर उन्हें सज़ा दिलवाई ओर दोनों ने एक दूसरे से शादी करली।
                                जादुई मूर्ति
  एक गांव में  मसाको नाम का एक लड़का रहता था। वह इतना गरीब था कि उसके पास चावल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। वह अपनी बूढ़ी मां के साथ रहता था।
      एक दिन वह खाने कि तलाश में निकला था। पहाड़ पर उसे एक मूर्ति दिखाई थी तो उसने सोचा क्यों ना इससे मांग लूं उसने मूर्ति से कहा हे जादुई मूर्ति मेरी मदद करो।

      जादुई मूर्ति हिलने लगी ओर अपनी लाठी ज़ोर ज़ोर से आसमान में मारने लगी ओर तभी आसमान से अच्छा खाना गिरने लगा ये देख मसाको बहुत खुश हुआ लेकिन उसका पड़ोसी उसे देख रहा था ओर मसाको के जाते ही वह मूर्ति के पास आकर बोला मुझे अच्छा खाना दो जैसे तुमने उसकी दिया। मूर्ति ने अपनी लाठी आसमान मारी तो आसमान से कचरा गिरने लगा ओर वो वहा से चला गया।
      जल्द ही सर्दी का मौसम आ गया ओर मसाको के घर में खिड़की टूटे होने कारण ठंडी हवा घर में आने लगी जिससे उन्हें सर्दी लगने लगी।
      उसने सोचा मूर्ति से मदद मांगता हूं वह मूर्ति के पास जा रहा था तो उसके पड़ोसी गोसाको ने उसका पीछा किया ओर देखा कि जादुई मूर्ति आसमान में लाठी मार रही है ओर आसमान से काग़ज़ गिरने लगे मसाको उन्हें चिपका कर ठंडी हवा रोक सकता था।
     मसाको के जाते ही गोसको वहा आ गया और मूर्ति के हाथ से लाठी छीन कर खुद आसमान में मारने लगा ओर फिर आसमान से पत्थर गिरने लगे ओर गोसाको भाग गया।
जादुई मूर्ति रोज़ आसमान में लाठी मारती थी अच्छा ओर कीमती समान रोज़ गिरता था। यह सब देख गोसाको जलने लगा ओर उसने सोचा कि ये बात में राजा को बताऊंगा तो राजा से मुझे अच्छा इनाम मिलेगा। उसने यह सब राजा की बता दिया।
     राजा ने अपने मंत्री को मसाको को पकड़ने भेजा। यह बात मसाको को पता चल गई ओर वह अपनी बूढ़ी मा ओर जादुई मूर्ति के साथ भागने लगा ओर राज्य कि सीमा पर पहुंच गया।
      उसने वहा देखा के दूसरा देश उनके देश पर हमला करने आ रहा था वह डर गया और उसने यह बात राजा को बताने का फैसला किया जादुई मूर्ति ने आसमान में लाठी मारी तो एक सवारी आ गई जिससे वह राजा के पास जल्दी पहुंच गया ओर पूरी बात राजा को बता दी ओर राजा ने दूसरे देश को हरा दिया। 
     इससे मसाको को बहुत सारा धन मिला मास्को अब अमीर ही गया था उसने जादुई मूर्ति के लिए एक घर बनाया। कुछ दिन बाद मूर्ति वहा से गायब हो गई ओर उसके बाद उसे किसी ने नहीं देखा।

   
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        माटी वाली की सफलता

         एक शहर में एक औरत रहती थी जिसका नाम सलजान था ओर उसका एक बेटा भी था जिसका नाम मुनीर  था। वह मिट्टी के खिलौने, बर्तन, मटके आदि बनाकर बेचते थे और उससे जो मुनाफा होता था उससे वह अपना लालन पालन करते थे।
           शहर का सबसे गरीब घर सलजान का था। गांव के बच्चों को स्कूल जाते देख मुनीर की भी इच्छा होती की वह भी स्कूल जाए किन्तु घर की ऐसी हालत की वजह से सलजान उसे स्कूल ना भेजती ओर शहर में कोई सस्ता स्कूल भी नहीं था। मुनीर हर वक्त अपनी मा से कहता कि मां मुझे भी स्कूल जाना है पर वह उससे कहती हा तुम एक दिन स्कूल जरूर जाओगे।
        एक दिन सलजान ने मुनीर से कहा कि मे तुम्हारा दाखला स्कूल में करवा दूंगी लेकिन इसके बदले तुम्हे मेरी कामो में मदद करनी होगी। मुनीर इस बात से राज़ी हो गया ओर स्कूल जाने लगा, स्कूल में सब उसका मज़ाक उड़ाते थे पर वह उं बातों पर ध्यान नहीं देता था। मुनीर सुबह से स्कूल जाता ओर दोपहर को वापिस आया ओर खाना कहा कर अपनी मा की मदद करता।
       एक दिन उसके में में खयाल आया ओर उसने अपनी मा से कहा - मा हम कब तक यूहीं बर्तन बेचेंगे क्यु न हम मिट्टी की नई आकृतियों के समान बनाकर उन्हें बाज़ार में अच्छे दाम पर बेचे। पहले तो सलजां ने माना कर दिया फिर वह मां गई।
      दोनों ने खूब मेहनत कर नए तरह के बास, मटके, ओर अन्य कई चीज़े बनाई। दूसरे दिन मुनीर स्कूल से लौटकर उन्हें बाज़ार में बेचने ले गया ओर उससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ उनकी बनाई चीज़े लोगो को बहुत पसंद आने लगी इस तरह दोनों नई तरह की आकृतियों का सामान बनाते ओर उन्हें बाजार में अच्छे दामो पर बेचते धीरे उनके पास बहुत सा धन इकट्ठा हो गया ओर वह भी एक धनी इंसान बन गए ओर उन्होंने एक अच्छा सा घर खरीद लिया। दोनों नई तरह कि आकृतियों बनाते ओर बेचकर मुनाफा कमाते थे ओर खुशी खुशी अपनी ज़िंदगी बिताते थे।


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                 टिहरी बांध कि माटीवाली

    बहुत समय पहले एक बूढ़ी औरत घर घर मिट्टी पहुंचाने का काम करती थी टिहरी शहर में शायद कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसे वह ना जानती हो या जहा उसे न जानते हो, घर के कुल निवासी बरसो से वहा रहते आ रहे है किरायेदार उनके बच्चे।           घर घर में मिट्टी पहुंचाने का काम करने वाली वह अकेली थी। उसका कोई विरोधी नहीं था। उसके बगैर तो लगता हैं, टिहरी शहर के चूल्हे चक्को की लीपाई करना मुश्किल हो जाएगा। वह न रहे तो लोगो के सामने अपने चूल्हे चक्के की लिपाई करने की समस्या खड़ी हो जाए। लाल मिट्टी लाना भोजन जुटाने ओर खाने कि तरह रोज़ कि एक समस्या है।
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Maatiwali

          घर में साफ लाल मिट्टी तो हर हालत में मौजूद रेहनी चाहिए चूल्हे चकको की लिपाई के अलावा साल दो साल में घर की लीपई करने के लिए भी लाल मिट्टी की जरूरत पढ़ती रहती है। शहर के अंदर कहीं मटाखना है नहीं। शहर में आने वाले नए किरायदार भी एक बार अपने आगन में उसे देख लेते है तो अपने आप माटीवाली के ग्राहक बन जाते है। घर घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक लाचार बुढ़िया माटीवाली।
        शहरवासी सिर्फ माटी वाली को ही नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे। रद्दी कपड़े को मोड़ कर बनाया गया गोल डिले के ऊपर लाल चिकनी मिट्टी से छूलबुला भरा कंटेनर टीका रहता है। उसके ऊपर कोई भी ढक्कन नहीं रहता।
        उसके कांटर को ज़मीन पर रखते ही सामने के घर से नो दस साल की एक छोटी लड़की मालिनी दौड़ती हुई वहा पर पहुंची और उसके सामने खड़ी हो गई।
मेरी मां ने कहा है, ज़रा हमारे यहां भी आ जाना। माटी वाली ने कहा आती हूं
       घर कि मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी को कच्चे आंगन में उंडेल देने को कह दिया ओर कहा तू बहुत भाग्यवान है चाय के टाइम पर आई हैं हमारे घर, भाग्यवान आए खाते वक्त। वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियां लेकर आई और रोटियां माटी वाली को देकर वह फिर अपनी रसोई में चली गई। माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं था। घर कि मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर उधर तेज निगाह दौड़ाई। हा, इस वक्त वह अकेली थी उसे कोई देख नहीं रहा था उसने फौरन एक रोटी अपने पल्लू में छुपा ली।
        घर कि मालकिन पीतल के एक ग्लास में चाय लेकर लौटी उसने वह ग्लास बुढ़िया के पास रख दिया और कहा ले, साग पात कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ ही खाले। चाय पीते हुए माटी वाली ने कहा चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराईन जी। भूक तो अपने में एक साग होती है भुक मीठी के भोजन मीठा।
        आप अभी तक पीतल के ग्लास संभाल कर रखी है। पूरे बाज़ार में तो क्या किसी के घर में अब नहीं मिल सकते ये ग्लास। मालकिन ने कहा इनके खरीदार कई बार चक्कर काटकर लौट गए, पुरखो की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजो को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवारा नहीं करता। हमे क्या मालूम किस तरह दो दो पैसे जमा करने के बाद खरीदी होंगी ये चीज़े, जिनकी हमारे लोगो के नज़रों में कोई कीमत नहीं रह गई हैं, बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगेगा ओर ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकठ्ठा कर ले जाते है तमाम बर्तन भाड़े। कासे के बर्तन भी कम दिखते है अब घरों में।
     माटी वाली ने कहा इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहा या तो स्टील के भाड़े दिखाई देंगे या फिर काच ओर चीनी मिट्टी के, अपनी चीज का मोह बहुत बडा होता है। में तो सोचकर पागल होती हूं कि अब इस उम्र में इस शहर को छोड़कर हम कहा जाए।
      चाय खत्म कर उसने अपने घटरी ओर कंटर उठाया और सामने के घर में चलीं गई।
       उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी लाने के आदेश के साथ उसे दो रोटियां मिल गई अने भी उसने अपने पल्लू में छुपा लिया। लोग जानते थे कि वह ये रोटियां अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है। उसके घर पहुंचते ही अशक्त बुढ़धा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है। वह घर में रसोई बनने का इंतजार करने लगता है। आज वह घर पहुंचते ही तीन रोटियां अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी। रोटियां देखकर चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का।
       उसका गांव शहर से इतना पास भी नहीं है। कितनी ही तेज चलो फिर भी आधा घंटा तो पहुंचने में लग ही जाता है। रोज़ सुबह निकल जाती हैं वह अपने घर से, पूरा दिन मिट्टी की खदान से मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक पहुंचाने में लग जाता है। घर पहुंचने से पहले रात घिरने लगती है। उसके पास अपना कोई खेत नहीं। ज़मीन का एक भी टुकड़ा नहीं। झोपडी , जिसमें वह गुज़ारा करती है। जिस ज़मीन पर उसकी झोपडी है वह ज़मीन भी एक ठाकुर कि है जिसके बदले में उसे ठाकुर के घर के कई काम करने पड़ते है।
        आज वह अपनी बुड्ढे को कोरी रोटियां नहीं देगी। माटी बेचने से जो आमदनी हुई उससे उसने एक पाव प्याज खरीदली। प्याज को कूटकर वह उन्हें जल्दी जल्दी तल लेगी। बुड्ढे को पहले रोटियां दिखाएगी ही नहीं। सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियां। यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई पहुंच गई अपने घर।
       उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रही। माटी वाली के पावों की आहट सुनकर वह चोंका नहीं। उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाई। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छू कर देखा। वह अपनी माटी वाली को छोड़कर जा चुका था।
      इधर टिहरी बांध पूरी तरह बन कर तेयार हो चुका था। बांध के पुनर्वास साहब ने उससे पूछा कि वह कहा रहती है। साहब -तुम तहसील से अपने घर का प्रमाण पत्र ले आना।
माटीवाली - मेरी ज़िन्दगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुजार गई साब।
साहब- माटी कहा से लाती हो
माटीवाली- माटा खान से लाती हूं
साहब - अगर वह माटा खान तेरे नाम है तो हम तेरा नाम लिख लेंगे।
माटीवाली- माटा खान तो मेरी रोज़ी है साहब।
साहब - बुढ़िया हमे ज़मीन के काग़ज़ चाहिए रोज़ी के नहीं।
माटी वाली- बांध खुलने के बाद में क्या करूंगी साहब?
साहब - इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते यह बात तो तुझे खुद तय करनी पड़ेगी।
      बांध कि दो सुरंगों को खोल दिया गया है। शहरक्मे पानी भरने लगा है। शहर में अपाधाप मची है। शरवासी अपने घरों को छोड़कर वहा से भागने लगे। पानी भर जाने से पहले कुल शमशान घाट डूब गए है।
      माटी वाली अपने झोपडी के बाहर बैठी है। गांव के हर आने जाने वाले से वह एक ही बात कहती जा रही है - गरीब आदमी का शमशान नहीं उजाड़ना चाहिए।
   
 
    

                              गीता का मर्म

       बहुत पुरानी बात है आनंदपाल नाम के एक राजा थे। उनका राज्य बहुत बड़ा था वे विद्वानों का आदर भी बहुत करते थे उनके राज्य में बड़े बड़े विद्वान एवं शास्त्र जानने वाले थे दूर के देशों से भी विद्वान आते रहते थे। राजा भी उनका अथोचित स्वागत सम्मान करते थे और भेंट भी देते थे उनके यहां से कोई भी विद्वान निराश होकर नहीं लोटतां था।
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गीता का मर्म
       एक बार राजा ने अपने मंत्रियों से कहा - मुझे श्री मद्भगवतगीता का ज्ञान प्राप्त करना है। अतः आप पूरे राज्य में घोषणा करवा दे की जो भी मुझे पूर्ण रूप से गीता समझा देगा उसे में अपना आधा राज्य दे दूंगा।
      मंत्रियों ने ढिंढोरा पिटवाकर पूरे राज्य के समस्त नगरों तथा ग्रामों में तथा राज्य के बाहर भी घोषणा करने को कहा। ढिंढोरा पीटकर घोषणा की गई- सुनो......सुनो......सुनो हमारे महाराज को जो कोई भी गीता पूर्ण रूप से समझा देगा उसे अधा राज्य दिया जाएगा। सुनो.... सुनो....!
     घोषणा सुनकर दूर दूर से बड़े बड़े विद्वान, पंडित, ज्ञानिजन राजा के पास आने लगे वे राजा को गीता का महत्व समझाते , उसके श्लोकों की विवेचना करते, अर्थ समझाते तथा अनेक उदाहरणों के माध्यम से व्याख्या करते किन्तु राजा की समझ में कुछ नहीं आता। वे सभी से यही कहते - श्रीमान, में आपके प्रवचन से संतुष्ट नहीं हूं मुझे गीता समझ में नहीं आई।
    उसी समय महेश नाम का एक प्रकांड विद्वान भी राजा के पास आया और बोला - राजन में आपको गीता समझाऊंगा। राजा ने कहा - श्रीमान आप व्यर्थ में ही कष्ट कर रहे है आज तक मुझे कोई भी विद्वान गीता का मर्म नहीं समझा पाया आप क्या समझाएंगे ? कृपया आप मेरा ओर अपना समय नष्ट मत कीजिए। महेश ने कहा मुझे एक अवसर तो दीजिए महाराज में आपको अवश्य संतुष्ट कार दूंगा।
    राजा ने कहा - जैसी आपकी इच्छा।
    महेश ने गीता के एक एक श्लोक का अर्थ व्याख्या सहित समझाया। ' धर्म क्षेत्र कुरु क्षेत्र.......... से प्रारंभ कर यात्रा योगेश्वर: कृष्णो यत्र पर्थो धनुर्धर:' तक पूरे सात सौ श्लोक राजा को लगभग कठांस्थ करा दिए। याघपी राजा की समझ में सब कुछ आ गया किन्तु आधा राज्य ना देने के लालच राजा के में समा गया था। उन्होने कहा मेरी समझ में कुछ नहीं आया श्रीमान। महेश ने कहा - राजन आप लालच में ऐसा कर रहे है, जबकि गीता का एक एक श्लोक उसका अर्थ व व्याख्या आप समझ चुके है।
      राजा ने क्रोध में कहा - श्रीमान , वाचलता न दिखाएं ओर मार्ग ग्रहण करे। मैने आपको बताया था कि आपसे पहले भी अनेक विद्वान यह प्रयास कर चुके है और सभी निराश होकर यहां से गए है। आपको भी में पूर्व में मना किया था कि आप मेरा ओर स्वयं का समय नष्ट न करें।
      महेश ने कहा - महाराज। आप असत्य भाषण न दे में गीता की एक एक बात आपको समझा चुका हूं।
      राजा ने कहा - असत्य भाषण में क्यों करूंगा ? यह तो आप ही है जो मेरा आधा राज्य पाने लालच में ऐसी बातें कर रहे है मुझे वास्तव में गीता बिल्कुल भी समझ में नहीं आई।
      महेश ने कहा - राजन आपको गीता समझ ने a चुकी है परन्तु आप अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे है। इस प्रकार विवाद बड़ता गया।
     इसी समय वहां महायोगी विशाख भी आ पहुंचे दोनों ने मध्यास्थत करने की प्राथना कि। योगिराज विशाख ने राजा से पूछा कि क्या आप गीता को समझे ? राजा ने कहा - नहीं में कुछ भी नहीं समझा। फिर उन्होंने महेश से पूछा कि क्या आपने राजन को गीता अच्छी तरह से समझा दी। महेश ने कहा - जी मुनिवर एक एक शब्द पद व अक्षर की व्याख्या करके समझाया है।
     महायोगी विशाख महेश से बोले - सच तो यह है कि अपने स्वयं ही गीता का मर्म नहीं समझा अन्यथा आप अधे राज्य के लालच के कारण इस प्रपंच में नहीं पड़ते क्योंकि गीता तो निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है, फल प्राप्ति की आशा से कर्म करने की नहीं। राजन ने भी अर्थ नही समझा है, अन्यथा विद्वानों का मान सम्मान करने वाले राजा व्यवहार इस प्रकार का नहीं होता। वास्तव में उपदेश देने का अधिकारी वहीं है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो। ज्ञान या स्वाध्याय का अर्थ हमे स्वयं को जानना है। विद्याग्रहण करने के बाद भी जिसने स्वयं को न जाना वह उसी व्यक्ति के समान है जिसके पास नक्शा है पर मार्ग नहीं सूझता।
     ज्ञान हमे रास्ता बतात है इससे हमारी विचार शक्ति बढ़ती हैं ओर देखने की शक्ति व्यापक हो जाती है तथा मनन करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। हम किसी परिणाम पर नियुक्ति युक्त ढंग से पहुंचने का प्रयत्न करते है विद्या से विनम्रता अती है ओर व्यक्ति शालीन बं जाता है। मन शांत हो जाता है चित्त एकाग्र हो जाता है। मात्र विषयों को जानना ही सच्चा ज्ञान नहीं है, पढ़े हुए को चरित्र में डालना ही सच्चा ज्ञान है।
    इसी तारतम्य में महायोगी विशाख ने एक ओर प्रसंग राजा आनंदपाल तथा पंडित महेश को सुनाया। उन्हें कहा एक बार अर्जुन देवलोक में इंद्र के पास धनुर्विद्या प्राप्त करने लिए पहुंचे परीक्षा में पुरनरूपें सफलता प्राप्त कर लेने पर इंद्र अत्यंत प्रसन्न होकर बोले - अर्जुन तुमने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ ओर लगन से धनुर्विद्या प्राप्त कर ली है अब जाओ और प्रथ्वी को जीतकर चक्रवर्ती राजा का सुख भोगते हुए यश का उपार्जन करो।
   इंद्र की बात सुनकर अर्जुन उदास हो गए। उन्हें उदास देखकर इंद्र बोले - क्या बात है वत्स ? अर्जुन ने विनम्रतापू्वक कहा - ध्रष्ता क्षमा करे देव, विजय यश ओर राज्य भीगने के लिए में धनुर्विद्या प्राप्त नहीं की है।
     इंद्र ने कहा - तो फिर इस विद्या का क्या करोगे स्पष्ट कहो।
    अर्जुन बोले - है देव ! सत्य व न्याय की रक्षा, दुष्टों का दमन, असहयो की सहायता, नारी की रक्षा करने, निर्बल को सबल बनाने हेतु ही मैने धनुर्विद्या प्राप्त की है।
   इस प्रसंग ने राजा के मन मे हलचल मचा दी। उन्हें लगा कि रहा के रूप में उनका कार्य जन कल्याण होना चाहिए राज भोग की इच्छा नहीं। उनके में वैराग्य भाव जगत हो गया। उन्होने अपना सम्पूर्ण राज्य गीता का मर्म सुनने वाले पंडित को देने की इच्छा व्यक्त की।
      उधर महाजनी महेश सोचने लगे में तो पंडित हूं,  राज भोग अथवा अधे राज्य का लालच मेरे लिए आत्मकल्याण के लिए उचित नहीं। उनके में में भी विरिकित पैदा हुई ओर वो राज पाट के मोह से मुक्त हो गए।
      महायोगी विशाख ने दोनों के इस निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्ति की ओर उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा - अब आप दोनों ही गीता के मर्म को भली भांति समझ गए है।

                        ( धन्यवाद)


        

                     किसान का जीवन

किसान स्वभाव से ही साधु होते है। किसान अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवन शाला है। उनके हवन कुंड की अग्नि चावल के लंबे और सफेद दानो के रूप में निकलती है। गेहूं के लाल दाने इस अग्नि की चिंगारियों की तरह हैं। में जब कभी अनार के फल और फूल को देखता तो मुझे बाग का माली याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिरकर उगे है, ओर हवा तथा प्रकाश की सहायता से मीठे फलो के रूप में नजर आ रहे है।
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Kisaan ka jeewan

         किसान मुझे अन्न में, फल में, फूल में दिखाई देता है। कहते है, ब्रह्महुती से जगत पैदा हुआ है। अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा समान हैं। खेत को वह ईश्वर की तरह प्रेम करता है। उसका सारा जीवन पत्ते - पत्ते में फल - फूल में दिखाई देता हैं। पेड़ों की तरह उसका जीवन भी एक प्रकार का मौन जीवन है। वायु, जल, प्रथ्वी, आकाश की निरोगता इसी के हिस्से में है। विद्या यह नहीं पढ़ा संध्या वांदनादी उसे नहीं आते, ज्ञान ध्यान का इसे पता नहीं, मंदिर, मस्जिद, गिरजे से इसे कोई सरोकार नहीं, केवल साग - पात कहकर खाकर ही यह अपनी भूख निवारण कर लेता है। ठंडी बेहती नदियों के शीतल जल से यह अपनी प्यास भुझा लेता है।
       प्रातः काल उठकर यह अपने हल और बैलों को नमस्कार करता है और खेत जितने चल देता है। दोपहर की धूप इसे भाती है। इसके बच्चे मिट्टी में ही खेलकर बड़े हो जाते है। इसको और इसके परिवार को बैल और गावों से प्रेम है। उनकी यह सेवा करता है। पानी के लिए पानी बरसाने वाले को इनकी आंखे तलाश करती है और आकाश की ओर उठती है। नयनों की भाषा में यह प्राथना करता है।
      सायं ओर प्रातः दिन विधाता इसके हदय में रहता है। यदि कोई इसके घर आ जाता हैं यह उसको मीठे जल ओर अन्न से त्रप्त करता है। धोका यह किसी को नहीं देता। यदि इसको कोई धोका दे भी दे, तो उसका इसे ज्ञान नहीं होता, क्योंकि इसकी खेती हरी भरी है, गाय इसकी दूध देती है, स्त्री इसकी अज्ञाकरी है, मकान इसका पुण्य ओर आनंद का स्थान है। पशुओं को चराने, नहलाने, खिलाना, पिलाना, उसके बच्चों का अपने बच्चो की तरह सेवा करना, खुले आकाश में उनके साथ रातें गुजार देना। दया वीरता इनके में बसी है।
       गुरुनानक ने सही कहा है-"भोले भाव मिले रघुराई" भोले भाले किसानों को ईश्वर अपने खुले दीदार के दर्शन देता है। उनकी घस फूस की छत में से सूर्य और चंद्रमा छन छनकर उनके बिस्तरओ पर पड़ते हैं। ये प्रकृति के जवान साधु है। जब कभी में इं बे मुकुट के गोपालों के दर्शन करता हूं, मेरा सिर स्वयं झुक जाता है।
      जब मुझे किसी किसान के दर्शन होते है तब मुझे मालूम होता की नंगे सिर, नंगे पांव, एक टोपी सिर पर, एक लंगोटी कमर में, एक काली कमली कंधे पर, एक लम्बी लाठी हाथ में लिए हुए गोवों जा मित्र, बैलों का हमजोली, पछियों का हमराज, महाराजाओं का अन्नदाता, बादशाहों की ताज पहनाने और सिंहासन पर बिठाने वाला, भूखी ओर नंगो को पालने वाला, समाज के पुष्पिघन का माली ओर खेतों का वाली जा रहा है।

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                          अंधेर नगरी  2

एक समय कि बात है। एक गुरु अपने दो शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे एक का नाम मदन और दूसरे का नाम मोहन था।
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   चलते हुए तीनों ने कई गाव की यात्रा की थी। चलते चलते शाम हो गई और वह एक गांव की सीमा पर पहुंच गए गुरु जी ने गांव से बाहर टेंट लगाने को कहा और भोजन करके सो गए। सुबह हुई तो गुरुजी ने मदन से कहा जाओ तुम कुछ सब्जी खरीद कर ले आओ। मदन गांव कि तरफ निकल गया और वहा पहुंच कर उसने भाजी का भाव पूछा तो दुकानदार ने कहा कि- टका सेर फिर मदन ने पूछा और इस गांव का नाम तो दुकानदार जवाब दिया - अंधेर नगरी और यह के चौपट राजा।
   मदन आगे बड़ा और उसने मिठाई का भाव पूछा तो उस दुकानदार ने भी यही जवाब दिया - टका सेर।
      मदन समझ गया की इस गांव में हर चीज टका सेर बिकती है। उसने बहुत सामान खरीद लिया और गुरु जी के पास पहुंचा तो गुरुजी ने कहा इतना सब कहा से ले आए तो मदन ने कहा गुरुजी आपने जो पैसे दिए थे उस में से ये सब लाया हूं और कुछ पैसे बच भी गए है तो गुरुजी ने कहा इतना सब इतने कम रूपए में कैसे?
  मदन ने कहा - यहां हर चीज टका सेर बिकती है। हम अपनी पूरी ज़िन्दगी यहां आराम से गुजार सकते है। अब हमे कहीं जाने की जरूरत नहीं है।
गुरु जी ने कहा - नहीं हम इस जगह नहीं रह सकते और तुरंत वहा से निकलने को कहा। मोहन तो चलने को तैयार था मगर मदन नहीं माना। गुरुजी के बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना आखिर में गुरुजी ने उसी वहीं रहने को कहा और वो दोनों वहा से चले गए।
  मदन यहां खा पीकर खूब मोटा हो रहा था।
      एक दिन चौपट राजा का दरबार लगा था और एक आदमी गुहार लगा रहा था। महाराज सुमेर सिंह की दीवार गिर गई और मेरी बकरी दब के मर गई। मुझे न्याय मिले महाराज।
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      राजा ने कहा - सुमेर सिंह बुलाओ। सुमेर सिंह, हाजिर हुआ तो राजा ने उससे कहा क्यों रे सुमेरा तूने ऐसी बकरी क्यों बनवाई कि बकरी गिर गई और दीवार दब के मर गई।
     मंत्री थोड़ा समझदार था तो उसने कहा - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
सुमेर सिंह ने कहा - महाराज इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मिस्त्री ने दीवार ही इतनी कमजोर बनाई के दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
   राजा ने कहा - मिस्त्री को बुलाओ, मिस्त्री आया तो राजा ने उससे पूछा क्यों री मिस्त्री तूने ऐसी दीवार क्यों बनाई की दीवार गिर गई और सुमेरा दब के मर गई।
   मंत्री बोला - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
 मिस्त्री बोला - महाराज में क्या करता मोची ने मशक इतनी बड़ी बना दी कि उसमे पानी ज़्यादा आ गया और दीवार कमजोर हो गई।
    राजा ना कहा - मोची को बुलाओ, मोची आया तो राजा ने उससे पुछा कि क्यों र मोची तूने ऐसी मशक क्यों बनाई की उसमे पानी ज़्यादा आ गया और मिस्त्री गिर गया और सुमेरा दब के मर गई।
मंत्री फिर बोला - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
   मोची ने कहा - महाराज में क्या करता उस समय कोतवाल जी की सवारी निकल रही थी इसलिए मशक बड़ी बन गई।
     राजा बोला - कोतवाल को बुलाओ, कोतवाल आया तो राजा ने उससे कहा क्यों र कोतवाल तूने ऐसी सवारी क्यों निकाली की मोची से मशक बड़ी बन गई और सब डूब के मर गए।
    कोतवाल बोला - महाराज मुझे छमा करे में अपने दफ्तर जा रहा था।
   महाराज ने उसे फांसी का हुक्म दे दिया जब जल्लाद ने उसे फांसी पर चढ़ाया तो उसकी गर्दन पतली होने के कारण वह उसे फांसी ना दे सका और महाराज से कहा तो राजा ने कहा इसकी जगह किसी मोटे इंसान को लटका दो।
    सब एक मोटे आदमी की तलाश में निकल गए और उन्हें मदन मिल गया और वह उसे पकड़कर ले गए।
    उसे फांसी पर चढ़ाया ही जा रहा था तभी वहा गुरुजी और मोहन आ गए और मदन के कान में कुछ कहा तो मदन ने खुश होकर कहा में फांसी पर चढ़ने को तेयार हूं।
    तभी राजा ने पूछा तुम इतने खुश क्यों हो ? तो गुरुजी ने जवाब दिया महाराज यह बहुत शुभ समय है इस समय जो फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा।
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    इतना सुनते ही कोतवाल बोला में फांसी पर चढ़ूंगा सारा कसूर मेरा इस तरह सब के बीच लड़ाई होने लगी तभी राजा बोला फांसी पर हम चढ़ेंगे स्वर्ग जाने का अधिकार पहले हमारा है। राजा को फांसी पर चढ़ाने में जल्लाद के हाथ कांप रहे थे तो राजा ने हुक्म दिया और उसने फांसी दे दी इस तरह मदन को गुरुजी ने बचा लिया।

अंधेर नगरी पार्ट 2 इं हिंदी।

इस कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है।हम किसी भी जाति,समुदाय,या किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।

                          (धन्यवाद)



                     Witch House

       once upon a time.  Some people were going to Gwalior to roam.  He was going through a forest path which was very scary.  The black dense forest was silent all around.  After crossing a little forest, his car suddenly broke down.
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     There was a strange sound coming from the forest, there was no means so far, everyone decided to cross the forest on foot.  Everyone was walking when a strange voice started coming to one of them, he was very scared but he dared to go towards that voice alone.  Arriving there, he saw a woman crying while sitting there.  He was a  scared but afraid he asked the woman - why are you crying?  So the lady replied that it is some distance away from my house and my leg is hurt, I cannot walk.  That man thought I would help him and asked him the way to go out.  Thinking this, he said this to the woman somewhere and the woman said, "Okay brother."
       Both were on the way.  He was also a afraid of black forest.  It was late night and both reached home, the house was a scary then that man and scared but the woman said that there is nothing to fear, I have been living here for many years.
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      He fell asleep after eating food.  When he woke up most of the night, he was horribly scared. He was getting a strange frightening voice. He woke up and he was surprised that the woman was reciting strange spells and seeing that she became a witch.
     The man was frightened and scared because of his scream, the witch saw him and started coming towards him, he was afraid and started running towards the forest.  There was a scary forest, there was a sound of dangerous animals coming from all sides, but he kept running and the witch was after him.
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     Running away he reaches a temple and faints.  When he regained consciousness in the morning, he narrated the whole incident to the priest of the temple.
    Then the priest told her - she was a girl who used to do tantra-mantra and one day her tantra was read upside down and she became a witch.  It is believed that She will be recovered by killing fifty people.

Based on a true phenomenon, little change has been made to maintain privacy.


                      (Thank you)

                       चुड़ैल का घर

एक बार की बात है। कुछ लोग घूमने के लिए ग्वालियर जा रहे थे। वह एक जंगल के रास्ते से जा रहे थे जो बहुत डरावना था। काला घना जंगल चारो तरफ सन्नाटा था। थोड़ी जंगल पार करने के बाद अचानक उनकी गाड़ी खराब हो गई।
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 जंगल से अजीब सी आवाज़ आ रही थी दूर तक कोई साधन नहीं था तो सभी ने पैदल जंगल पार करने निर्णय लिया। सभी चल रहे थे तभी उनमें से एक व्यक्ति को अजीब सी आवाज़ आने लगी वो बहुत डर गया पर हिम्मत करके वह अकेला उस आवाज़ की तरफ जाने लगा। वहा पहुंच कर उसने देखा कि एक औरत वहा पर बैठ कर रो रही है। वह थोड़ा डर गया पर डरते हुए उसने उस औरत पूछा - आप क्यों रो रही है? तो उस औरत ने जवाब दिया कि यह से कुछ दूर पर मेरा घर है और मेरे पैर में चोट आई है में चल नहीं सकती। उस आदमी ने सोचा में उसकी मदद कर देता हूं और इनसे बाहर जाने के लिए रास्ता पूछा लूंगा। यह सोच कर उसने यह बात औरत से कहीं और उस औरत ने कहा ठीक है भैया।
दोनों रास्ते पर चल रहे थे। काला घना जंगल था उसे थोड़ा डर भी लग रहा था। चलते चलते रात हो गई और दोनों घर पहुंच गए घर थोड़ा डरावना था तो वो आदमी और डर गया पर औरत ने  कहा कि डरने कि कोई बात नहीं में यहां कई वर्ष से रह रही हूं।
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   खाना खा कर वह सो गया। अधि रात को जब उसकी नींद खुली तो वह बहुत बुरी तरह डर गया उसे अजीब सी डरावनी आवाज आ रही थी उसने उठ कर देखा तो वह हैरान रह गया वह औरत अजीब तरह के मंत्र पढ़ रही थी और देखते ही देखते वह चुड़ैल बन गई।
       वह आदमी डर गया और डर कि वजह से उसकी चीख निकल गई चुड़ैल ने उसे देख लिया और उसकी तरफ आने लगी वह डर गया और जंगल कि तरफ भागने लगा। डरावना जंगल था चारो तरफ से खतरनाक जानवरो की आवाज आ रही थी किन्तु वह भागता रहा और चुड़ैल उसके पीछे थी।
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     भागते हुए वह एक मंदिर में पहुंच गया और बेहोश हो गया। जब सुबह उसे होश आया तो उसने सारी घटना मंदिर के पुजारी को सुनाई।
   तब उस पुजारी ने उसे बताया - वह एक लड़की थी जो तन्त्र- मंत्र करती थी एक दिन उसका तंत्र उल्टा पढ़ गया और वो चुड़ैल बन गई। ऐसा माना जाता है कि पचास बली चढ़ान से वह वापिस ठीक हो जाएगी।

        एक सत्य घटना पर आधारित है गोपिन्यर रखनेके लिए थोड़ा परिवर्तन किया गया है।

                          (धन्यवाद)

                       Win courage

  Soma and Sheela were good friends since childhood.  As neighbors, the two spend most of their time together.  If it is not found on the day, then it seems like a big work is left.
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 One day Soma came to her aunt and her girl Madhu.  Soma was very happy to see them.  Soma kept Madhu's luggage in her room.  He thought he would spend a good holiday with Dussehra.

 Three to four years later, she met her aunt and her girl.  So their talk was not ending.  How two days have passed; it is not known.  One day Madhu Boli - I am bored at home.  I have been there for three days and we have not been told.  We have such a stir on the festival that we do not stay home even for a day.

 Soma said but father would have to agree to go out.  Let's go to my friend's house.  Haven't been there for two days.  Will meet you very happy, Sheela is of very good nature.  Makes the painting so good.

 Both went to Sheela's house.  Soma said to Sheela that she is my aunt's girl.  Bored at home, I thought to introduce you.

 "Sheila said why do you stand, sit."

 Soma sat down in a chair, but Madhu stood still.  She was just looking at Sheila.  Then Sheela said - "I don't have a hand. You must be feeling strange."

 "Madhu said no."  Saying that she also sat down.  After a while Madhu got up from there and Sheela had to get up as well.

 When both of them sat talking again at night, Madhu said - "What kind of friendship is Soma with your Sheela? If you were in your place, you would never have been friendly. Don't play, don't jump. Just talk all the time. That way your life is also spoiled."  It will be done. "

 "Soma said, no honey, you don't know Sheela. Four years from now she was as healthy and beautiful as us. One day I got a letter that the grandmother's condition is bad, so Sheela left with her mother. The bus from which  As they were leaving, she crashed on the way. Aunt's head was hurt. But the bones of both the hands of Sheela were crushed. The doctors were forced to cut both her hands. When Sheela was conscious she looked at her hands.
  He ceased cried a lot. Everyone understood. But she keeps all just cry. "

 After some time she came home from the hospital.  But when she was lying down, she began to get bored when the aunt realized that she was very fond of reading.  Just then aunt gave her good books.

 Now his time began to pass properly.  One day Sheela said - "Mother, you bring my course books. I will keep reading. Otherwise my year will be spoiled."

 Aunty was very happy to hear this.  He loaded books to Sheela.  When she was fully recuperated, the principal sent her back saying that she was no longer a normal girl.  Therefore, he will not be able to study here.  At that time she cried a lot.  He felt that his life is useless now.
        But Aaunt explained to him that you should not panic.  If you have the passion to study then you will definitely be able to fall.  Sheila said crying but how mother?  How will I write?  How will I make a painting?  I have no hands?

 Aunt explained to her that daughter, hard work never goes waste.  You too will do everything.  Just like everyone else does. "Sheila said crying but how mother? How will I be able to do it all? I was bedridden and started crying.
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 Aunt wiped her tears.  Then lovingly explained - "Look, Sheela, when God snatches something from someone, he even gives it to someone. Otherwise, it becomes difficult for a person to live. You too can write your name in the school of Divyang children.  There you will be able to complete your studies. Losing courage will not cost anything, son. "

 After that Sheela started going to school.  But still she remains very sad.  One day when she returned from school she was very happy.  Aunt asked her today my daughter is very happy is there anything special?  Won't tell me

 Sheila said mother- "A boy with me reads Anil. He cannot see. He takes the work of the eyes by hand. He reads it in Braille script after touching it. He has a watch. Touch his raised digits.  He tells me the perfect time. Looking at him, I thought that when he can do the work of the eyes with his hands, then why can't I do the work of hands with my feet? "

 Just from the same day she started practicing writing by holding a pen with her feet.  Apart from writing, she started to work with her feet, making paintings, cooking.  Initially, he felt awkward.  There were problems too.  But aunty always encouraged her and she continued to succeed.  This year she was appearing for class XII examination.  She makes painting so good that she participated in painting competition like other children this year.  Even after the organizers said, she did not take much time and said that it would be dishonest and on seeing everyone, holding a brush in the foot and created such a beautiful scenery that the viewers were amazed.

 Now she makes beautiful paintings on cards of New Year, Holi, Diwali, Eid, Christmas, Birthday etc. in free time after reading;  And comes to sell them at the store.  Every month she earns so much money that her needs are met.  She is getting Chhatravratti to study.  I do not like to face my mother and father.  Frankly, she has become self-sufficient from now on.  His defeat has now changed to victory.

 Madhu was listening to all this.  He regrets his thinking.  Sheela got up very high in his eyes.


Let's Learn: - We should never  discriminate anyone

जीत- साहस की

सोमा और शीला बचपन से अच्छी मित्र थी। पड़ोसी होने के नाते दोनों ज़्यादातर समय साथ ही बिताती। जिस दिन नहीं मिलती तो ऐसा लगता कोई बड़ा काम रह गया।
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     एक दिन सोमा के घर उसकी मौसी और उनकी लड़की मधु आई थी। सोमा उन्हें देख बहुत खुश हुई। सोमा ने मधु का सामान अपने कमरे में रख लिया। उसने सोचा मधु के साथ दशहरे की छुट्टियां अच्छी बितेंगी।
    तीन चार साल बाद वो अपनी मौसी और उनकी लड़की से मिली थी। इसलिए उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही थी। दो दिन केसे बीत गए;पता ही नहीं चला। एक दिन मधु बोली- में तो घर में उब गई हूं। मुझे आए तीन दिन हो गए और हम लोग कही गए नहीं। हमारे यहां त्योहार पर इतनी चहल पहल रहती है कि हम एक दिन भी घर नहीं रहते।
    सोमा ने कहा मगर बाहर जाने के लिए तो पापा को माना पड़ेगा। चलो हम मेरी सहेली के घर चलते है। दो दिन से गए भी नहीं है। मिलोगी तो बहुत खुश हो जाओगी बहुत अच्छी स्वभाव की है शीला। पेंटिंग तो इतनी बढ़िया बनाती है।
   दोनों शीला के घर चली गई। सोमा ने शीला से कहा ये मेरी मौसी की लड़की है। घर पर ऊब गई तो सोचा तुमसे मिलवा दू।
    "शीला ने कहा तुम खड़े क्यों हो, बैठो।"
सोमा कुर्सी खीच कर  बैठ गई , लेकिन मधु वैसे ही खड़ी रही। वह बस शीला को देखे जा रही थी। तभी शीला बोली-"मेरे हाथ नहीं है। आपको अजीब लग रहा होगा।"
   "मधु ने कहा नहीं।" कहकर वो भी बैठ गई। थोड़ी देर बाद मधु वहा से उठ गई और शीला को भी उठना पड़ा।
    रात को जब दोनों फिर बातें करने बैठ तो मधु ने कहा -"सोमा तुम्हारी शीला से कैसी दोस्ती है? तुम्हारी जगह में होती तो कभी मित्रता ना करती। ना खेलना,न कूदना। बस सारे वक्त बातें। इस तरह तो तुम्हारी जिन्दगी भी चौपट हो जाएगी।"
  " सोमा ने कहा, नहीं मधु तुम शीला को नहीं जानती। अब से चार साल पहले वो हमारी तरह स्वस्थ और सुंदर थी। एक दिन खत मिला के नानी की हालत खराब है, तो शीला अपनी मां के साथ रवाना हो गई। जिस बस से वो लोग जा रहे थे, वह रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। चाची के सिर में चोट आई। मगर शीला के दोनों हाथ की हड्डियां चूर चूर हो गई। मजबूरन डाक्टरों को उसके दोनों हाथ काटने पड़े। शीला को जब होश आया तो अपने हाथ देखकर वह बहुत रोई।
 सब समझा कर रह गए। मगर वो हर बस रोती है रहती।"
कुछ समय बाद वह अस्पताल से घर आ गई। लेकिन लेटे लेटे वह ऊबने लगी तभी चाची को खयाल आया कि उसे पढ़ने का बहुत शौक है। बस फिर चाची ने उसे अच्छी अच्छी किताबें लेकर दी।
   अब उसका वक्त ठीक से गुजरने लगा। एक दिन शीला ने कहा -"मां , आप मेरी कोर्स की किताबें ला दीजिए। में पढ़ती रहूंगी। नहीं तो मेरा साल खराब हो जाएगा।"
   चाची यह सुन कर बहुत खुश हुईं। उन्होन शीला को किताबें लादी। पूरी तरह स्वस्थ होकर जब वह स्कूल पहुंची तो प्राचार्य ने यह कहकर उसे वापस भेज दिया कि वह अब सामान्य लड़की नहीं है। इसलिए उसकी पढ़ाई यहां नहीं हो सकेगी। उस समय वह बहुत रोई। उसे लगा उसका जीना अब बेकार है।
   मगर चाची ने उसे समझाया के तुम घबराओ नहीं। अगर तुम्हारे में पढ़ने की लगन है तो तुम जरूर पड़ सकोगी। शीला ने रोते हुए कहा मगर केसे मां? केसे लिखूंगी? केसे पेंटिंग बनाऊंगी? मेरे तो हाथ ही नहीं?
    चाची ने उसे समझाया के बेटी, मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। तुम भी सब करोगी। वैसे ही जैसे सब करते है।"शीला रोते हुए कहा मगर मां कैसे? में केसे कर पाऊंगी सब? में तो अपाहिज हो गई और रोने लगी।
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   चाची ने उसके आंसू पोछे। फिर प्यार से समझाते हुए कहा-"देखो शीला, भगवान जब किसी से कुछ छिनता है तो उसे कुछ देता भी है। नहीं तो इंसान का जीना मुश्किल हो जाए। तुम भी तसल्ली रखो में तुम्हारा नाम दिव्यांग बच्चों के स्कूल में लिखवा देती हूं। वहा तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर सकोगे। हिम्मत हारने से कुछ भी हाथ नहीं लगेगा बेटे।"
     उसके बाद शीला स्कूल जाने लगी। मगर फिर भी वह बहुत उदास रहती। एक दिन वह स्कूल से लौटी तो वह बहुत खुश थी। चाची ने उससे पूछा आज मेरी बेटी बहुत खुश है कोई खास बात है? मुझे नहीं बताएगी।
     शीला ने कहा मां-"मेरे साथ एक लड़का पढ़ता है अनिल। वह देख नहीं सकता। वह आंखों का काम हाथ से लेता है। वह छू छू कर ब्रेल लिपि से पढ़ता है। उसके पास एक घड़ी है। उसके उठे हुए अंको को छू कर वह एकदम सही समय बता देता है। उसे देखकर मुझे लगा कि जब वह आंखों का काम हाथो  से ले सकता है, तो फिर में अपने पैरों से हाथों का काम क्यों नहीं ले सकती ?"
    बस, उसी दिन से वह पैरों से कलम पकड़कर लिखने का अभ्यास करने लगी। लिखने के अलावा पेंटिंग बनाना, खाना बनाना कई काम वह पैरों से करने लगी। शुरू में उसे अटपटा लगता था। दिक्कत भी आती थी। मगर चाची ने सदा उसकी हिम्मत बढ़ाई और वह कामयाब होती रही। इस साल वह बारहवीं की परीक्षा दे रही थी। पेंटिंग तो वह इतनी अच्छी बनाती है कि उसने इस वर्ष चित्रकला प्रतियोगिता में अन्य बच्चों की तरह भाग लिया था। आयोजकों के कहने पर भी उसने अधिक समय नहीं लिया और कहा ये बेईमानी होगी और सबके देखते ही देखते पैर में ब्रश पकड़कर ऐसी सुंदर सीनरी बनाई की देखने वाले चकित रह गए।
     अब वह पढ़ने के बाद खाली समय में नए वर्ष, होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस, जन्मदिन आदि के कार्ड्स पर सुंदर पेंटिंग बनाती है; और उन्हें दुकान पर बिकने के लिए से आती है। हर महीने वह इतना धन कमा लेती की उससे उसकी जरुरते पूरी हो जाती है। पढ़ने के लिए उसे छत्रवरात्ती मिल रही है। अपने मां- पापा के सामने हाथ नहीं पसार्ती। सच कहूं वह अभी से आत्मनिर्भर बन गई है। उसकी हार अब जीत ने बदल गई है।
    मधु यह सब सुन रही थी। उसे अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ। शीला उसकी नज़रों में बहुत ऊंची उठ गई।



अयिये सीखे:- हमें कभी किसी से इश्यता या भेदभाव नहीं करना चाहिए


                            The Gift

A king was very just.  Discussions of his justice and kindness were spread far and wide.  He tried his best that no one was grieving in my state, so from time to time, the state would send workers to take stock of their state and if anyone was in trouble, people would make every effort not to be grieved.
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 When Raja's son Rajkumar's birthday came, he announced the whole kingdom, whoever would bring the most beautiful gift for my son, he would be given five thousand gold currency in prize.  There was a stir in the entire state.  Everyone started buying beautiful gifts.  Great Seth moneylenders made beautiful toys or other items of gold and silver.  Many people sewed new clothes for the prince.  Kishan, who was very poor, also thought that what should I take for the prince?  There was nothing except flour in the house, he said to his wife- "You make bread of this dough, then I will take the gift of bread for the prince."
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 The wife said- "Have you gone mad? Poor bread like us do not even eat their dogs. People are carrying things made of gold, silver and diamond beads, so who would ask these dry bread of yours?"
 Kishan said - I understand this but I will also see the king and prince in the pretext of gift.  I will also see their luxurious palace. "
 Kishan's wife made all the flour bread.  Kishan tied them in a bundle and set out towards the king's palace.  On the way he found a beggar, he was very hungry.  Kishan thought the poor person is very hungry.  If I give some bread from the bread that I have, what difference will it make if he gave four bread to the beggar.  The beggar became very happy to see the bread and offered prayers to Kishan.  Kishan left there after giving bread.
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 Kishan saw two dogs walking on the way and saw that both dogs are hungry.  Kishan put two bread in front of both dogs.
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 Now he had three breads left.  After walking some distance, he found a cow and her baby.  Kishan always saw the cow as Go Mata. He say hello the cow and fed them both each bread.  He thought that I have a bread and which king will eat my bread.  So he thought that a bread for a gift is enough.

 He was shocked after reaching the palace.  Seeing the magnificence of there, he felt ashamed of his clothes and his bread.  Great people brought beautiful beautiful gifts.  There was a pile of gifts in the royal palace.  Kishan stood in a corner in shame and the king's eyes fell on him.  The king said - "Brother, come forward, what gift have you brought for my son? And what is your name?"
 Kishan moved forward with dismay.  He was also hesitant to keep his fair feet on the soft and beautiful carpet.
 The king said- "Come forward there is nothing to fear."
 Kishan went ahead and bowed to the king and said - "Huzur, my name is Kishan. There is my house four kos away from here."
 The king said - "give, what gift have you brought? Get out of the bag."
 Kishan hesitantly took out the bread from the bag and placed it in front of the king.  All the people present in the palace blushed and laughed.
 The king said - "All be quiet."  Then extended his hand towards Kishan and took the bread and asked- "Brother Kishan only one bread? What will happen to me and the prince with one bread?"
 He narrated all the things that happened on the way and said - "Huzur, I have said in my capacity to bring gifts for you. I have brought what I had so that I can see you. I fed the bread to the needy on the way. Thought  Who would eat the bread of the poor king, so it saved a bread "
 The king made him sit on the chair and announced among all the people that the best gift Kishan has brought today.  There is no shortage of gold and silver in our palace.  The blessings that Kishan has helped along the way, he has brought with him, so five thousand currencies are given to Kishan, as well as his and his family will be looked after by the treasury.
 Hearing this, Kishan became very happy and lived happily with his wife.


 Let's learn: We should always respect the gift of another.

  •                                उपहार

एक राजा बड़ा ही न्यायप्रिय था उसके न्याय और दयालुता के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे वह पूरी कोशिश करता था कि मेरे राज्य में कोई दुःखी नहीं रहे अतः समय समय पर राज्य कर्मचरियों को अपने राज्य का जायजा लेने भेजता रहता और किसी को भी कष्ट हो तो हर संभव कोशिश करता कि लोग दुःखी ना रहे
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      राजा के बेटे राजकुमार का जन्मदिन आया तो उसने पूरे राज्य में ऐलान करवा दिया जो भी मेरे बेटे के लिए सबसे सुंदर उपहार लाएगा उसे पांच हजार स्वर्ण मुद्रा ईनाम में दी जाएंगी      पूरे राज्य में हलचल मच गई हर कोई सुंदर से सुंदर उपहार खरीदने में लग गया। बड़े-बड़े सेठ साहूकारों ने सोने चांदी के सुंदर-सुंदर खिलौने या अन्य चीज बनवाई बहुत से लोगो ने राजकुमार के लिए नए-नए कपड़े सिलवाए किशन जो बहुत गरीब था उसने भी सोचा कि में राजकुमार के लिए क्या लेकर जाऊ  घर में आटे के सिवाय कुछ भी नहीं था उसने अपनी  पत्नी से कहा-तुम इस आटे की रोटियां बना दो तो में राजकुमार के लिए रोटियों का उपहार लेकर जाऊ
     पत्नी ने कहा-क्या पागल हो गए हो हमारे जैसे गरीब की रोटियां तो उनके कुत्ते भी नहीं खाते लोग सोने-चांदी  और हीरे मोती से बनी चीजें ले जा रहे है ऐसे में तुम्हारी इन सूखी रोटियों को कौन पूछेगा ?
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    किशन ने कहा - यह तो में भी समझता हूं लेकिन उपहार के बहाने में भी राजा और राजकुमार के दर्शन कर लूंगा उनका आलीशान महल भी देख लूंगा
   किशन की पत्नी ने सारे आटे कि रोटियां बना दी किशन उन्हें पोटली में बांधकर राजा के महल के तरफ निकल पड़ा रास्ते में उसे एक भिखारी मिला वो बहुत भूखा था किशन ने सोचा बेचारा बहुत भूखा है  मेरे पास जो रोटियां है क्यों ना उसम से कुछ रोटियां इसे दे दू तो क्या फर्क पड़ेगा उसने चार रोटी भिखारी को दे दी भिखारी रोटियां देख बहुत खुश हो गया और किशन को दुआएं देने लगा रोटी देकर किशन वहा से चला गया।
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   किशन को चलते हुए रास्ते पर दो कुत्ते दिखाई दिए उसने देखा कि दोनों कुत्ते भूखे है किशन ने दो दो रोटियां दोनों कुत्तों के आगे डाल दी ।
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  अब उसके पास तीन रोटी बची थी  कुछ दूर चलने के बाद उसे एक गाय और बच्छड़ा मिला किशन गाय को हमेशा से गो माता के रूप में देखता था उसने गाय को नमस्कार किया और दोनों को एक एक रोटी खिला दी उसने सोचा एक रोटी है मेरे पास और कौन राजा मेरी रोटी खाएंगे अतः उसने सोचा उपहार के लिए एक रोटी ही काफी है।
  राजमहल पहुंचकर वह हक्का बक्का रह गया वहा की भव्यता देखकर उसे अपने कपड़ों और अपनी रोटी पर शर्म आने लगी बड़े बड़े लोग सुंदर सुंदर उपहार लाए थे राज दरबार में उपहारों का ढेर लगा था किशन शर्म के मारे एक कोने में खड़ा हो गया राजा की नजर उस पर पड़ गई राजा ने कहा -भाई आगे आओ तुम क्या उपहार लाए हो मेरे बेटे के लिए और तुम्हारा नाम क्या है
   किशन सुकुचता हुए आगे बड़ा नर्म और सुंदर कालीन पर अपने मेले पाव रखने में भी उसे संकोच हो रहा था
   राजा ने कहा-आगे आ जाओ डरने की कोई बात नहीं है
   किशन ने आगे बढ़कर राजा को प्रणाम किया और बोला हुज़ूर मेरा नाम किशन है यहां से चार कोस दूर पर मेरा घर है।
    राजा ने कहा - लाओ क्या उपहार लाए हो  निकालो झोले से।
    किशन ने सकुचाते हुए झोले से रोटी निकाली और राजा के सामने रख दी दरबार में उपस्थित सारे लोग खिलखिला कर हंस पड़े।
    राजा ने कहा -सब चुप रहे  फिर किशन की तरफ हाथ बढ़ा कर रोटी ले ली और पूछा- भाई किशन एक ही रोटी  एक रोटी से मेरा और राजकुमार का क्या होगा
   उसने रास्ते में जो हुए वो सारा हाल सुनाया और बोला -हुज़ूर मुझमें आपके लिए उपहार लाने की हैसियत कहा है जो कुछ था मेरे पास वहीं लेकर आ गया हूं ताकि आपके दर्शन कर सकू रास्ते में जरूरतमंदो को मैने रोटियां खिला दी सोचा कौन राजा गरीब कि रोटी खाएगा इसलिए यह एक रोटी बचाई
     राजा ने उसे कुर्सी पर बैठाया और सभी जनो के बीच ऐलान किया कि आज सबसे अच्छा उपहार किशन लाया है सोने चांदी की हमारे महल में कोई कमी नहीं है किशन ने जिन जिन कि रास्ते में मदद कि उनकी दुआएं वह साथ लाया है अतः पांच हजार मुद्राएं किशन को दी जाती है साथ ही साथ इसका और इसके परिवार का खयाल भी राजकोष से होगा
यह सुन कर किशन बहुत खुश हुआ और अपनी पत्नी के साथ खुशी खुशी रहने लगा।


अयिए सीखे:-हमें हमेशा दूसरे के उपहार की इज्ज़त करना चाहिए।