Maatiwali Ki safalta, Hindi story
        माटी वाली की सफलता

         एक शहर में एक औरत रहती थी जिसका नाम सलजान था ओर उसका एक बेटा भी था जिसका नाम मुनीर  था। वह मिट्टी के खिलौने, बर्तन, मटके आदि बनाकर बेचते थे और उससे जो मुनाफा होता था उससे वह अपना लालन पालन करते थे।
           शहर का सबसे गरीब घर सलजान का था। गांव के बच्चों को स्कूल जाते देख मुनीर की भी इच्छा होती की वह भी स्कूल जाए किन्तु घर की ऐसी हालत की वजह से सलजान उसे स्कूल ना भेजती ओर शहर में कोई सस्ता स्कूल भी नहीं था। मुनीर हर वक्त अपनी मा से कहता कि मां मुझे भी स्कूल जाना है पर वह उससे कहती हा तुम एक दिन स्कूल जरूर जाओगे।
        एक दिन सलजान ने मुनीर से कहा कि मे तुम्हारा दाखला स्कूल में करवा दूंगी लेकिन इसके बदले तुम्हे मेरी कामो में मदद करनी होगी। मुनीर इस बात से राज़ी हो गया ओर स्कूल जाने लगा, स्कूल में सब उसका मज़ाक उड़ाते थे पर वह उं बातों पर ध्यान नहीं देता था। मुनीर सुबह से स्कूल जाता ओर दोपहर को वापिस आया ओर खाना कहा कर अपनी मा की मदद करता।
       एक दिन उसके में में खयाल आया ओर उसने अपनी मा से कहा - मा हम कब तक यूहीं बर्तन बेचेंगे क्यु न हम मिट्टी की नई आकृतियों के समान बनाकर उन्हें बाज़ार में अच्छे दाम पर बेचे। पहले तो सलजां ने माना कर दिया फिर वह मां गई।
      दोनों ने खूब मेहनत कर नए तरह के बास, मटके, ओर अन्य कई चीज़े बनाई। दूसरे दिन मुनीर स्कूल से लौटकर उन्हें बाज़ार में बेचने ले गया ओर उससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ उनकी बनाई चीज़े लोगो को बहुत पसंद आने लगी इस तरह दोनों नई तरह की आकृतियों का सामान बनाते ओर उन्हें बाजार में अच्छे दामो पर बेचते धीरे उनके पास बहुत सा धन इकट्ठा हो गया ओर वह भी एक धनी इंसान बन गए ओर उन्होंने एक अच्छा सा घर खरीद लिया। दोनों नई तरह कि आकृतियों बनाते ओर बेचकर मुनाफा कमाते थे ओर खुशी खुशी अपनी ज़िंदगी बिताते थे।


यह भी पढ़े - ओर देखे

                 टिहरी बांध कि माटीवाली

    बहुत समय पहले एक बूढ़ी औरत घर घर मिट्टी पहुंचाने का काम करती थी टिहरी शहर में शायद कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसे वह ना जानती हो या जहा उसे न जानते हो, घर के कुल निवासी बरसो से वहा रहते आ रहे है किरायेदार उनके बच्चे।           घर घर में मिट्टी पहुंचाने का काम करने वाली वह अकेली थी। उसका कोई विरोधी नहीं था। उसके बगैर तो लगता हैं, टिहरी शहर के चूल्हे चक्को की लीपाई करना मुश्किल हो जाएगा। वह न रहे तो लोगो के सामने अपने चूल्हे चक्के की लिपाई करने की समस्या खड़ी हो जाए। लाल मिट्टी लाना भोजन जुटाने ओर खाने कि तरह रोज़ कि एक समस्या है।
Tehri dam story, tehri dam Ki maatiwali
Maatiwali

          घर में साफ लाल मिट्टी तो हर हालत में मौजूद रेहनी चाहिए चूल्हे चकको की लिपाई के अलावा साल दो साल में घर की लीपई करने के लिए भी लाल मिट्टी की जरूरत पढ़ती रहती है। शहर के अंदर कहीं मटाखना है नहीं। शहर में आने वाले नए किरायदार भी एक बार अपने आगन में उसे देख लेते है तो अपने आप माटीवाली के ग्राहक बन जाते है। घर घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक लाचार बुढ़िया माटीवाली।
        शहरवासी सिर्फ माटी वाली को ही नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे। रद्दी कपड़े को मोड़ कर बनाया गया गोल डिले के ऊपर लाल चिकनी मिट्टी से छूलबुला भरा कंटेनर टीका रहता है। उसके ऊपर कोई भी ढक्कन नहीं रहता।
        उसके कांटर को ज़मीन पर रखते ही सामने के घर से नो दस साल की एक छोटी लड़की मालिनी दौड़ती हुई वहा पर पहुंची और उसके सामने खड़ी हो गई।
मेरी मां ने कहा है, ज़रा हमारे यहां भी आ जाना। माटी वाली ने कहा आती हूं
       घर कि मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी को कच्चे आंगन में उंडेल देने को कह दिया ओर कहा तू बहुत भाग्यवान है चाय के टाइम पर आई हैं हमारे घर, भाग्यवान आए खाते वक्त। वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियां लेकर आई और रोटियां माटी वाली को देकर वह फिर अपनी रसोई में चली गई। माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं था। घर कि मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर उधर तेज निगाह दौड़ाई। हा, इस वक्त वह अकेली थी उसे कोई देख नहीं रहा था उसने फौरन एक रोटी अपने पल्लू में छुपा ली।
        घर कि मालकिन पीतल के एक ग्लास में चाय लेकर लौटी उसने वह ग्लास बुढ़िया के पास रख दिया और कहा ले, साग पात कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ ही खाले। चाय पीते हुए माटी वाली ने कहा चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराईन जी। भूक तो अपने में एक साग होती है भुक मीठी के भोजन मीठा।
        आप अभी तक पीतल के ग्लास संभाल कर रखी है। पूरे बाज़ार में तो क्या किसी के घर में अब नहीं मिल सकते ये ग्लास। मालकिन ने कहा इनके खरीदार कई बार चक्कर काटकर लौट गए, पुरखो की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजो को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवारा नहीं करता। हमे क्या मालूम किस तरह दो दो पैसे जमा करने के बाद खरीदी होंगी ये चीज़े, जिनकी हमारे लोगो के नज़रों में कोई कीमत नहीं रह गई हैं, बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगेगा ओर ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकठ्ठा कर ले जाते है तमाम बर्तन भाड़े। कासे के बर्तन भी कम दिखते है अब घरों में।
     माटी वाली ने कहा इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहा या तो स्टील के भाड़े दिखाई देंगे या फिर काच ओर चीनी मिट्टी के, अपनी चीज का मोह बहुत बडा होता है। में तो सोचकर पागल होती हूं कि अब इस उम्र में इस शहर को छोड़कर हम कहा जाए।
      चाय खत्म कर उसने अपने घटरी ओर कंटर उठाया और सामने के घर में चलीं गई।
       उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी लाने के आदेश के साथ उसे दो रोटियां मिल गई अने भी उसने अपने पल्लू में छुपा लिया। लोग जानते थे कि वह ये रोटियां अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है। उसके घर पहुंचते ही अशक्त बुढ़धा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है। वह घर में रसोई बनने का इंतजार करने लगता है। आज वह घर पहुंचते ही तीन रोटियां अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी। रोटियां देखकर चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का।
       उसका गांव शहर से इतना पास भी नहीं है। कितनी ही तेज चलो फिर भी आधा घंटा तो पहुंचने में लग ही जाता है। रोज़ सुबह निकल जाती हैं वह अपने घर से, पूरा दिन मिट्टी की खदान से मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक पहुंचाने में लग जाता है। घर पहुंचने से पहले रात घिरने लगती है। उसके पास अपना कोई खेत नहीं। ज़मीन का एक भी टुकड़ा नहीं। झोपडी , जिसमें वह गुज़ारा करती है। जिस ज़मीन पर उसकी झोपडी है वह ज़मीन भी एक ठाकुर कि है जिसके बदले में उसे ठाकुर के घर के कई काम करने पड़ते है।
        आज वह अपनी बुड्ढे को कोरी रोटियां नहीं देगी। माटी बेचने से जो आमदनी हुई उससे उसने एक पाव प्याज खरीदली। प्याज को कूटकर वह उन्हें जल्दी जल्दी तल लेगी। बुड्ढे को पहले रोटियां दिखाएगी ही नहीं। सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियां। यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई पहुंच गई अपने घर।
       उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रही। माटी वाली के पावों की आहट सुनकर वह चोंका नहीं। उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाई। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छू कर देखा। वह अपनी माटी वाली को छोड़कर जा चुका था।
      इधर टिहरी बांध पूरी तरह बन कर तेयार हो चुका था। बांध के पुनर्वास साहब ने उससे पूछा कि वह कहा रहती है। साहब -तुम तहसील से अपने घर का प्रमाण पत्र ले आना।
माटीवाली - मेरी ज़िन्दगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुजार गई साब।
साहब- माटी कहा से लाती हो
माटीवाली- माटा खान से लाती हूं
साहब - अगर वह माटा खान तेरे नाम है तो हम तेरा नाम लिख लेंगे।
माटीवाली- माटा खान तो मेरी रोज़ी है साहब।
साहब - बुढ़िया हमे ज़मीन के काग़ज़ चाहिए रोज़ी के नहीं।
माटी वाली- बांध खुलने के बाद में क्या करूंगी साहब?
साहब - इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते यह बात तो तुझे खुद तय करनी पड़ेगी।
      बांध कि दो सुरंगों को खोल दिया गया है। शहरक्मे पानी भरने लगा है। शहर में अपाधाप मची है। शरवासी अपने घरों को छोड़कर वहा से भागने लगे। पानी भर जाने से पहले कुल शमशान घाट डूब गए है।
      माटी वाली अपने झोपडी के बाहर बैठी है। गांव के हर आने जाने वाले से वह एक ही बात कहती जा रही है - गरीब आदमी का शमशान नहीं उजाड़ना चाहिए।
   
 
    

                              गीता का मर्म

       बहुत पुरानी बात है आनंदपाल नाम के एक राजा थे। उनका राज्य बहुत बड़ा था वे विद्वानों का आदर भी बहुत करते थे उनके राज्य में बड़े बड़े विद्वान एवं शास्त्र जानने वाले थे दूर के देशों से भी विद्वान आते रहते थे। राजा भी उनका अथोचित स्वागत सम्मान करते थे और भेंट भी देते थे उनके यहां से कोई भी विद्वान निराश होकर नहीं लोटतां था।
Geeta story in hindi, Geeta ka marm
गीता का मर्म
       एक बार राजा ने अपने मंत्रियों से कहा - मुझे श्री मद्भगवतगीता का ज्ञान प्राप्त करना है। अतः आप पूरे राज्य में घोषणा करवा दे की जो भी मुझे पूर्ण रूप से गीता समझा देगा उसे में अपना आधा राज्य दे दूंगा।
      मंत्रियों ने ढिंढोरा पिटवाकर पूरे राज्य के समस्त नगरों तथा ग्रामों में तथा राज्य के बाहर भी घोषणा करने को कहा। ढिंढोरा पीटकर घोषणा की गई- सुनो......सुनो......सुनो हमारे महाराज को जो कोई भी गीता पूर्ण रूप से समझा देगा उसे अधा राज्य दिया जाएगा। सुनो.... सुनो....!
     घोषणा सुनकर दूर दूर से बड़े बड़े विद्वान, पंडित, ज्ञानिजन राजा के पास आने लगे वे राजा को गीता का महत्व समझाते , उसके श्लोकों की विवेचना करते, अर्थ समझाते तथा अनेक उदाहरणों के माध्यम से व्याख्या करते किन्तु राजा की समझ में कुछ नहीं आता। वे सभी से यही कहते - श्रीमान, में आपके प्रवचन से संतुष्ट नहीं हूं मुझे गीता समझ में नहीं आई।
    उसी समय महेश नाम का एक प्रकांड विद्वान भी राजा के पास आया और बोला - राजन में आपको गीता समझाऊंगा। राजा ने कहा - श्रीमान आप व्यर्थ में ही कष्ट कर रहे है आज तक मुझे कोई भी विद्वान गीता का मर्म नहीं समझा पाया आप क्या समझाएंगे ? कृपया आप मेरा ओर अपना समय नष्ट मत कीजिए। महेश ने कहा मुझे एक अवसर तो दीजिए महाराज में आपको अवश्य संतुष्ट कार दूंगा।
    राजा ने कहा - जैसी आपकी इच्छा।
    महेश ने गीता के एक एक श्लोक का अर्थ व्याख्या सहित समझाया। ' धर्म क्षेत्र कुरु क्षेत्र.......... से प्रारंभ कर यात्रा योगेश्वर: कृष्णो यत्र पर्थो धनुर्धर:' तक पूरे सात सौ श्लोक राजा को लगभग कठांस्थ करा दिए। याघपी राजा की समझ में सब कुछ आ गया किन्तु आधा राज्य ना देने के लालच राजा के में समा गया था। उन्होने कहा मेरी समझ में कुछ नहीं आया श्रीमान। महेश ने कहा - राजन आप लालच में ऐसा कर रहे है, जबकि गीता का एक एक श्लोक उसका अर्थ व व्याख्या आप समझ चुके है।
      राजा ने क्रोध में कहा - श्रीमान , वाचलता न दिखाएं ओर मार्ग ग्रहण करे। मैने आपको बताया था कि आपसे पहले भी अनेक विद्वान यह प्रयास कर चुके है और सभी निराश होकर यहां से गए है। आपको भी में पूर्व में मना किया था कि आप मेरा ओर स्वयं का समय नष्ट न करें।
      महेश ने कहा - महाराज। आप असत्य भाषण न दे में गीता की एक एक बात आपको समझा चुका हूं।
      राजा ने कहा - असत्य भाषण में क्यों करूंगा ? यह तो आप ही है जो मेरा आधा राज्य पाने लालच में ऐसी बातें कर रहे है मुझे वास्तव में गीता बिल्कुल भी समझ में नहीं आई।
      महेश ने कहा - राजन आपको गीता समझ ने a चुकी है परन्तु आप अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे है। इस प्रकार विवाद बड़ता गया।
     इसी समय वहां महायोगी विशाख भी आ पहुंचे दोनों ने मध्यास्थत करने की प्राथना कि। योगिराज विशाख ने राजा से पूछा कि क्या आप गीता को समझे ? राजा ने कहा - नहीं में कुछ भी नहीं समझा। फिर उन्होंने महेश से पूछा कि क्या आपने राजन को गीता अच्छी तरह से समझा दी। महेश ने कहा - जी मुनिवर एक एक शब्द पद व अक्षर की व्याख्या करके समझाया है।
     महायोगी विशाख महेश से बोले - सच तो यह है कि अपने स्वयं ही गीता का मर्म नहीं समझा अन्यथा आप अधे राज्य के लालच के कारण इस प्रपंच में नहीं पड़ते क्योंकि गीता तो निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है, फल प्राप्ति की आशा से कर्म करने की नहीं। राजन ने भी अर्थ नही समझा है, अन्यथा विद्वानों का मान सम्मान करने वाले राजा व्यवहार इस प्रकार का नहीं होता। वास्तव में उपदेश देने का अधिकारी वहीं है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो। ज्ञान या स्वाध्याय का अर्थ हमे स्वयं को जानना है। विद्याग्रहण करने के बाद भी जिसने स्वयं को न जाना वह उसी व्यक्ति के समान है जिसके पास नक्शा है पर मार्ग नहीं सूझता।
     ज्ञान हमे रास्ता बतात है इससे हमारी विचार शक्ति बढ़ती हैं ओर देखने की शक्ति व्यापक हो जाती है तथा मनन करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। हम किसी परिणाम पर नियुक्ति युक्त ढंग से पहुंचने का प्रयत्न करते है विद्या से विनम्रता अती है ओर व्यक्ति शालीन बं जाता है। मन शांत हो जाता है चित्त एकाग्र हो जाता है। मात्र विषयों को जानना ही सच्चा ज्ञान नहीं है, पढ़े हुए को चरित्र में डालना ही सच्चा ज्ञान है।
    इसी तारतम्य में महायोगी विशाख ने एक ओर प्रसंग राजा आनंदपाल तथा पंडित महेश को सुनाया। उन्हें कहा एक बार अर्जुन देवलोक में इंद्र के पास धनुर्विद्या प्राप्त करने लिए पहुंचे परीक्षा में पुरनरूपें सफलता प्राप्त कर लेने पर इंद्र अत्यंत प्रसन्न होकर बोले - अर्जुन तुमने अपने परिश्रम, पुरुषार्थ ओर लगन से धनुर्विद्या प्राप्त कर ली है अब जाओ और प्रथ्वी को जीतकर चक्रवर्ती राजा का सुख भोगते हुए यश का उपार्जन करो।
   इंद्र की बात सुनकर अर्जुन उदास हो गए। उन्हें उदास देखकर इंद्र बोले - क्या बात है वत्स ? अर्जुन ने विनम्रतापू्वक कहा - ध्रष्ता क्षमा करे देव, विजय यश ओर राज्य भीगने के लिए में धनुर्विद्या प्राप्त नहीं की है।
     इंद्र ने कहा - तो फिर इस विद्या का क्या करोगे स्पष्ट कहो।
    अर्जुन बोले - है देव ! सत्य व न्याय की रक्षा, दुष्टों का दमन, असहयो की सहायता, नारी की रक्षा करने, निर्बल को सबल बनाने हेतु ही मैने धनुर्विद्या प्राप्त की है।
   इस प्रसंग ने राजा के मन मे हलचल मचा दी। उन्हें लगा कि रहा के रूप में उनका कार्य जन कल्याण होना चाहिए राज भोग की इच्छा नहीं। उनके में वैराग्य भाव जगत हो गया। उन्होने अपना सम्पूर्ण राज्य गीता का मर्म सुनने वाले पंडित को देने की इच्छा व्यक्त की।
      उधर महाजनी महेश सोचने लगे में तो पंडित हूं,  राज भोग अथवा अधे राज्य का लालच मेरे लिए आत्मकल्याण के लिए उचित नहीं। उनके में में भी विरिकित पैदा हुई ओर वो राज पाट के मोह से मुक्त हो गए।
      महायोगी विशाख ने दोनों के इस निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्ति की ओर उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा - अब आप दोनों ही गीता के मर्म को भली भांति समझ गए है।

                        ( धन्यवाद)


        

                     किसान का जीवन

किसान स्वभाव से ही साधु होते है। किसान अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवन शाला है। उनके हवन कुंड की अग्नि चावल के लंबे और सफेद दानो के रूप में निकलती है। गेहूं के लाल दाने इस अग्नि की चिंगारियों की तरह हैं। में जब कभी अनार के फल और फूल को देखता तो मुझे बाग का माली याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिरकर उगे है, ओर हवा तथा प्रकाश की सहायता से मीठे फलो के रूप में नजर आ रहे है।
Kisaan ka jeewan, kisaan Ki zindagi, kisaan, kisaan

Kisaan ka jeewan

         किसान मुझे अन्न में, फल में, फूल में दिखाई देता है। कहते है, ब्रह्महुती से जगत पैदा हुआ है। अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा समान हैं। खेत को वह ईश्वर की तरह प्रेम करता है। उसका सारा जीवन पत्ते - पत्ते में फल - फूल में दिखाई देता हैं। पेड़ों की तरह उसका जीवन भी एक प्रकार का मौन जीवन है। वायु, जल, प्रथ्वी, आकाश की निरोगता इसी के हिस्से में है। विद्या यह नहीं पढ़ा संध्या वांदनादी उसे नहीं आते, ज्ञान ध्यान का इसे पता नहीं, मंदिर, मस्जिद, गिरजे से इसे कोई सरोकार नहीं, केवल साग - पात कहकर खाकर ही यह अपनी भूख निवारण कर लेता है। ठंडी बेहती नदियों के शीतल जल से यह अपनी प्यास भुझा लेता है।
       प्रातः काल उठकर यह अपने हल और बैलों को नमस्कार करता है और खेत जितने चल देता है। दोपहर की धूप इसे भाती है। इसके बच्चे मिट्टी में ही खेलकर बड़े हो जाते है। इसको और इसके परिवार को बैल और गावों से प्रेम है। उनकी यह सेवा करता है। पानी के लिए पानी बरसाने वाले को इनकी आंखे तलाश करती है और आकाश की ओर उठती है। नयनों की भाषा में यह प्राथना करता है।
      सायं ओर प्रातः दिन विधाता इसके हदय में रहता है। यदि कोई इसके घर आ जाता हैं यह उसको मीठे जल ओर अन्न से त्रप्त करता है। धोका यह किसी को नहीं देता। यदि इसको कोई धोका दे भी दे, तो उसका इसे ज्ञान नहीं होता, क्योंकि इसकी खेती हरी भरी है, गाय इसकी दूध देती है, स्त्री इसकी अज्ञाकरी है, मकान इसका पुण्य ओर आनंद का स्थान है। पशुओं को चराने, नहलाने, खिलाना, पिलाना, उसके बच्चों का अपने बच्चो की तरह सेवा करना, खुले आकाश में उनके साथ रातें गुजार देना। दया वीरता इनके में बसी है।
       गुरुनानक ने सही कहा है-"भोले भाव मिले रघुराई" भोले भाले किसानों को ईश्वर अपने खुले दीदार के दर्शन देता है। उनकी घस फूस की छत में से सूर्य और चंद्रमा छन छनकर उनके बिस्तरओ पर पड़ते हैं। ये प्रकृति के जवान साधु है। जब कभी में इं बे मुकुट के गोपालों के दर्शन करता हूं, मेरा सिर स्वयं झुक जाता है।
      जब मुझे किसी किसान के दर्शन होते है तब मुझे मालूम होता की नंगे सिर, नंगे पांव, एक टोपी सिर पर, एक लंगोटी कमर में, एक काली कमली कंधे पर, एक लम्बी लाठी हाथ में लिए हुए गोवों जा मित्र, बैलों का हमजोली, पछियों का हमराज, महाराजाओं का अन्नदाता, बादशाहों की ताज पहनाने और सिंहासन पर बिठाने वाला, भूखी ओर नंगो को पालने वाला, समाज के पुष्पिघन का माली ओर खेतों का वाली जा रहा है।

ओर भी पढ़े - click here

                          अंधेर नगरी  2

एक समय कि बात है। एक गुरु अपने दो शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे एक का नाम मदन और दूसरे का नाम मोहन था।
Andher nagri part 2,andher nagri choupat Raja,Ander nagri 2 Kahani in hindi

Andher nagri 2 Kahani in hindi

   चलते हुए तीनों ने कई गाव की यात्रा की थी। चलते चलते शाम हो गई और वह एक गांव की सीमा पर पहुंच गए गुरु जी ने गांव से बाहर टेंट लगाने को कहा और भोजन करके सो गए। सुबह हुई तो गुरुजी ने मदन से कहा जाओ तुम कुछ सब्जी खरीद कर ले आओ। मदन गांव कि तरफ निकल गया और वहा पहुंच कर उसने भाजी का भाव पूछा तो दुकानदार ने कहा कि- टका सेर फिर मदन ने पूछा और इस गांव का नाम तो दुकानदार जवाब दिया - अंधेर नगरी और यह के चौपट राजा।
   मदन आगे बड़ा और उसने मिठाई का भाव पूछा तो उस दुकानदार ने भी यही जवाब दिया - टका सेर।
      मदन समझ गया की इस गांव में हर चीज टका सेर बिकती है। उसने बहुत सामान खरीद लिया और गुरु जी के पास पहुंचा तो गुरुजी ने कहा इतना सब कहा से ले आए तो मदन ने कहा गुरुजी आपने जो पैसे दिए थे उस में से ये सब लाया हूं और कुछ पैसे बच भी गए है तो गुरुजी ने कहा इतना सब इतने कम रूपए में कैसे?
  मदन ने कहा - यहां हर चीज टका सेर बिकती है। हम अपनी पूरी ज़िन्दगी यहां आराम से गुजार सकते है। अब हमे कहीं जाने की जरूरत नहीं है।
गुरु जी ने कहा - नहीं हम इस जगह नहीं रह सकते और तुरंत वहा से निकलने को कहा। मोहन तो चलने को तैयार था मगर मदन नहीं माना। गुरुजी के बहुत समझाने पर भी वह नहीं माना आखिर में गुरुजी ने उसी वहीं रहने को कहा और वो दोनों वहा से चले गए।
  मदन यहां खा पीकर खूब मोटा हो रहा था।
      एक दिन चौपट राजा का दरबार लगा था और एक आदमी गुहार लगा रहा था। महाराज सुमेर सिंह की दीवार गिर गई और मेरी बकरी दब के मर गई। मुझे न्याय मिले महाराज।
Andher nagri part 2,andher nagri choupat Raja,Ander nagri 2 Kahani in hindi

Andher nagri 2

      राजा ने कहा - सुमेर सिंह बुलाओ। सुमेर सिंह, हाजिर हुआ तो राजा ने उससे कहा क्यों रे सुमेरा तूने ऐसी बकरी क्यों बनवाई कि बकरी गिर गई और दीवार दब के मर गई।
     मंत्री थोड़ा समझदार था तो उसने कहा - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
सुमेर सिंह ने कहा - महाराज इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मिस्त्री ने दीवार ही इतनी कमजोर बनाई के दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
   राजा ने कहा - मिस्त्री को बुलाओ, मिस्त्री आया तो राजा ने उससे पूछा क्यों री मिस्त्री तूने ऐसी दीवार क्यों बनाई की दीवार गिर गई और सुमेरा दब के मर गई।
   मंत्री बोला - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
 मिस्त्री बोला - महाराज में क्या करता मोची ने मशक इतनी बड़ी बना दी कि उसमे पानी ज़्यादा आ गया और दीवार कमजोर हो गई।
    राजा ना कहा - मोची को बुलाओ, मोची आया तो राजा ने उससे पुछा कि क्यों र मोची तूने ऐसी मशक क्यों बनाई की उसमे पानी ज़्यादा आ गया और मिस्त्री गिर गया और सुमेरा दब के मर गई।
मंत्री फिर बोला - महाराज दीवार गिर गई और बकरी दब के मर गई।
   मोची ने कहा - महाराज में क्या करता उस समय कोतवाल जी की सवारी निकल रही थी इसलिए मशक बड़ी बन गई।
     राजा बोला - कोतवाल को बुलाओ, कोतवाल आया तो राजा ने उससे कहा क्यों र कोतवाल तूने ऐसी सवारी क्यों निकाली की मोची से मशक बड़ी बन गई और सब डूब के मर गए।
    कोतवाल बोला - महाराज मुझे छमा करे में अपने दफ्तर जा रहा था।
   महाराज ने उसे फांसी का हुक्म दे दिया जब जल्लाद ने उसे फांसी पर चढ़ाया तो उसकी गर्दन पतली होने के कारण वह उसे फांसी ना दे सका और महाराज से कहा तो राजा ने कहा इसकी जगह किसी मोटे इंसान को लटका दो।
    सब एक मोटे आदमी की तलाश में निकल गए और उन्हें मदन मिल गया और वह उसे पकड़कर ले गए।
    उसे फांसी पर चढ़ाया ही जा रहा था तभी वहा गुरुजी और मोहन आ गए और मदन के कान में कुछ कहा तो मदन ने खुश होकर कहा में फांसी पर चढ़ने को तेयार हूं।
    तभी राजा ने पूछा तुम इतने खुश क्यों हो ? तो गुरुजी ने जवाब दिया महाराज यह बहुत शुभ समय है इस समय जो फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा।
Andher nagri part 2,andher nagri choupat Raja,Ander nagri 2 Kahani in hindi

Andher nagri choupat raja

    इतना सुनते ही कोतवाल बोला में फांसी पर चढ़ूंगा सारा कसूर मेरा इस तरह सब के बीच लड़ाई होने लगी तभी राजा बोला फांसी पर हम चढ़ेंगे स्वर्ग जाने का अधिकार पहले हमारा है। राजा को फांसी पर चढ़ाने में जल्लाद के हाथ कांप रहे थे तो राजा ने हुक्म दिया और उसने फांसी दे दी इस तरह मदन को गुरुजी ने बचा लिया।

अंधेर नगरी पार्ट 2 इं हिंदी।

इस कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है।हम किसी भी जाति,समुदाय,या किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।

                          (धन्यवाद)



                     Witch House

       once upon a time.  Some people were going to Gwalior to roam.  He was going through a forest path which was very scary.  The black dense forest was silent all around.  After crossing a little forest, his car suddenly broke down.
Witch house,story in english witch house,witch house story
Horror story

     There was a strange sound coming from the forest, there was no means so far, everyone decided to cross the forest on foot.  Everyone was walking when a strange voice started coming to one of them, he was very scared but he dared to go towards that voice alone.  Arriving there, he saw a woman crying while sitting there.  He was a  scared but afraid he asked the woman - why are you crying?  So the lady replied that it is some distance away from my house and my leg is hurt, I cannot walk.  That man thought I would help him and asked him the way to go out.  Thinking this, he said this to the woman somewhere and the woman said, "Okay brother."
       Both were on the way.  He was also a afraid of black forest.  It was late night and both reached home, the house was a scary then that man and scared but the woman said that there is nothing to fear, I have been living here for many years.
Horror story in english

      He fell asleep after eating food.  When he woke up most of the night, he was horribly scared. He was getting a strange frightening voice. He woke up and he was surprised that the woman was reciting strange spells and seeing that she became a witch.
     The man was frightened and scared because of his scream, the witch saw him and started coming towards him, he was afraid and started running towards the forest.  There was a scary forest, there was a sound of dangerous animals coming from all sides, but he kept running and the witch was after him.
Real horror story

     Running away he reaches a temple and faints.  When he regained consciousness in the morning, he narrated the whole incident to the priest of the temple.
    Then the priest told her - she was a girl who used to do tantra-mantra and one day her tantra was read upside down and she became a witch.  It is believed that She will be recovered by killing fifty people.

Based on a true phenomenon, little change has been made to maintain privacy.


                      (Thank you)

                       चुड़ैल का घर

एक बार की बात है। कुछ लोग घूमने के लिए ग्वालियर जा रहे थे। वह एक जंगल के रास्ते से जा रहे थे जो बहुत डरावना था। काला घना जंगल चारो तरफ सन्नाटा था। थोड़ी जंगल पार करने के बाद अचानक उनकी गाड़ी खराब हो गई।
Chudail ka Ghar,Hindi story chudail ka Ghar,chudail ka Ghar story in hindi
Horror story in hindi
 जंगल से अजीब सी आवाज़ आ रही थी दूर तक कोई साधन नहीं था तो सभी ने पैदल जंगल पार करने निर्णय लिया। सभी चल रहे थे तभी उनमें से एक व्यक्ति को अजीब सी आवाज़ आने लगी वो बहुत डर गया पर हिम्मत करके वह अकेला उस आवाज़ की तरफ जाने लगा। वहा पहुंच कर उसने देखा कि एक औरत वहा पर बैठ कर रो रही है। वह थोड़ा डर गया पर डरते हुए उसने उस औरत पूछा - आप क्यों रो रही है? तो उस औरत ने जवाब दिया कि यह से कुछ दूर पर मेरा घर है और मेरे पैर में चोट आई है में चल नहीं सकती। उस आदमी ने सोचा में उसकी मदद कर देता हूं और इनसे बाहर जाने के लिए रास्ता पूछा लूंगा। यह सोच कर उसने यह बात औरत से कहीं और उस औरत ने कहा ठीक है भैया।
दोनों रास्ते पर चल रहे थे। काला घना जंगल था उसे थोड़ा डर भी लग रहा था। चलते चलते रात हो गई और दोनों घर पहुंच गए घर थोड़ा डरावना था तो वो आदमी और डर गया पर औरत ने  कहा कि डरने कि कोई बात नहीं में यहां कई वर्ष से रह रही हूं।
Horror storys

   खाना खा कर वह सो गया। अधि रात को जब उसकी नींद खुली तो वह बहुत बुरी तरह डर गया उसे अजीब सी डरावनी आवाज आ रही थी उसने उठ कर देखा तो वह हैरान रह गया वह औरत अजीब तरह के मंत्र पढ़ रही थी और देखते ही देखते वह चुड़ैल बन गई।
       वह आदमी डर गया और डर कि वजह से उसकी चीख निकल गई चुड़ैल ने उसे देख लिया और उसकी तरफ आने लगी वह डर गया और जंगल कि तरफ भागने लगा। डरावना जंगल था चारो तरफ से खतरनाक जानवरो की आवाज आ रही थी किन्तु वह भागता रहा और चुड़ैल उसके पीछे थी।
Real horror story

     भागते हुए वह एक मंदिर में पहुंच गया और बेहोश हो गया। जब सुबह उसे होश आया तो उसने सारी घटना मंदिर के पुजारी को सुनाई।
   तब उस पुजारी ने उसे बताया - वह एक लड़की थी जो तन्त्र- मंत्र करती थी एक दिन उसका तंत्र उल्टा पढ़ गया और वो चुड़ैल बन गई। ऐसा माना जाता है कि पचास बली चढ़ान से वह वापिस ठीक हो जाएगी।

        एक सत्य घटना पर आधारित है गोपिन्यर रखनेके लिए थोड़ा परिवर्तन किया गया है।

                          (धन्यवाद)