किसान का जीवन।

                     किसान का जीवन

किसान स्वभाव से ही साधु होते है। किसान अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवन शाला है। उनके हवन कुंड की अग्नि चावल के लंबे और सफेद दानो के रूप में निकलती है। गेहूं के लाल दाने इस अग्नि की चिंगारियों की तरह हैं। में जब कभी अनार के फल और फूल को देखता तो मुझे बाग का माली याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिरकर उगे है, ओर हवा तथा प्रकाश की सहायता से मीठे फलो के रूप में नजर आ रहे है।
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Kisaan ka jeewan

         किसान मुझे अन्न में, फल में, फूल में दिखाई देता है। कहते है, ब्रह्महुती से जगत पैदा हुआ है। अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा समान हैं। खेत को वह ईश्वर की तरह प्रेम करता है। उसका सारा जीवन पत्ते - पत्ते में फल - फूल में दिखाई देता हैं। पेड़ों की तरह उसका जीवन भी एक प्रकार का मौन जीवन है। वायु, जल, प्रथ्वी, आकाश की निरोगता इसी के हिस्से में है। विद्या यह नहीं पढ़ा संध्या वांदनादी उसे नहीं आते, ज्ञान ध्यान का इसे पता नहीं, मंदिर, मस्जिद, गिरजे से इसे कोई सरोकार नहीं, केवल साग - पात कहकर खाकर ही यह अपनी भूख निवारण कर लेता है। ठंडी बेहती नदियों के शीतल जल से यह अपनी प्यास भुझा लेता है।
       प्रातः काल उठकर यह अपने हल और बैलों को नमस्कार करता है और खेत जितने चल देता है। दोपहर की धूप इसे भाती है। इसके बच्चे मिट्टी में ही खेलकर बड़े हो जाते है। इसको और इसके परिवार को बैल और गावों से प्रेम है। उनकी यह सेवा करता है। पानी के लिए पानी बरसाने वाले को इनकी आंखे तलाश करती है और आकाश की ओर उठती है। नयनों की भाषा में यह प्राथना करता है।
      सायं ओर प्रातः दिन विधाता इसके हदय में रहता है। यदि कोई इसके घर आ जाता हैं यह उसको मीठे जल ओर अन्न से त्रप्त करता है। धोका यह किसी को नहीं देता। यदि इसको कोई धोका दे भी दे, तो उसका इसे ज्ञान नहीं होता, क्योंकि इसकी खेती हरी भरी है, गाय इसकी दूध देती है, स्त्री इसकी अज्ञाकरी है, मकान इसका पुण्य ओर आनंद का स्थान है। पशुओं को चराने, नहलाने, खिलाना, पिलाना, उसके बच्चों का अपने बच्चो की तरह सेवा करना, खुले आकाश में उनके साथ रातें गुजार देना। दया वीरता इनके में बसी है।
       गुरुनानक ने सही कहा है-"भोले भाव मिले रघुराई" भोले भाले किसानों को ईश्वर अपने खुले दीदार के दर्शन देता है। उनकी घस फूस की छत में से सूर्य और चंद्रमा छन छनकर उनके बिस्तरओ पर पड़ते हैं। ये प्रकृति के जवान साधु है। जब कभी में इं बे मुकुट के गोपालों के दर्शन करता हूं, मेरा सिर स्वयं झुक जाता है।
      जब मुझे किसी किसान के दर्शन होते है तब मुझे मालूम होता की नंगे सिर, नंगे पांव, एक टोपी सिर पर, एक लंगोटी कमर में, एक काली कमली कंधे पर, एक लम्बी लाठी हाथ में लिए हुए गोवों जा मित्र, बैलों का हमजोली, पछियों का हमराज, महाराजाओं का अन्नदाता, बादशाहों की ताज पहनाने और सिंहासन पर बिठाने वाला, भूखी ओर नंगो को पालने वाला, समाज के पुष्पिघन का माली ओर खेतों का वाली जा रहा है।

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