टिहरी बांध कि माटीवाली
बहुत समय पहले एक बूढ़ी औरत घर घर मिट्टी पहुंचाने का काम करती थी टिहरी शहर में शायद कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसे वह ना जानती हो या जहा उसे न जानते हो, घर के कुल निवासी बरसो से वहा रहते आ रहे है किरायेदार उनके बच्चे। घर घर में मिट्टी पहुंचाने का काम करने वाली वह अकेली थी। उसका कोई विरोधी नहीं था। उसके बगैर तो लगता हैं, टिहरी शहर के चूल्हे चक्को की लीपाई करना मुश्किल हो जाएगा। वह न रहे तो लोगो के सामने अपने चूल्हे चक्के की लिपाई करने की समस्या खड़ी हो जाए। लाल मिट्टी लाना भोजन जुटाने ओर खाने कि तरह रोज़ कि एक समस्या है।
Maatiwali |
घर में साफ लाल मिट्टी तो हर हालत में मौजूद रेहनी चाहिए चूल्हे चकको की लिपाई के अलावा साल दो साल में घर की लीपई करने के लिए भी लाल मिट्टी की जरूरत पढ़ती रहती है। शहर के अंदर कहीं मटाखना है नहीं। शहर में आने वाले नए किरायदार भी एक बार अपने आगन में उसे देख लेते है तो अपने आप माटीवाली के ग्राहक बन जाते है। घर घर जाकर माटी बेचने वाली नाटे कद की एक लाचार बुढ़िया माटीवाली।
शहरवासी सिर्फ माटी वाली को ही नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते थे। रद्दी कपड़े को मोड़ कर बनाया गया गोल डिले के ऊपर लाल चिकनी मिट्टी से छूलबुला भरा कंटेनर टीका रहता है। उसके ऊपर कोई भी ढक्कन नहीं रहता।
उसके कांटर को ज़मीन पर रखते ही सामने के घर से नो दस साल की एक छोटी लड़की मालिनी दौड़ती हुई वहा पर पहुंची और उसके सामने खड़ी हो गई।
उसके कांटर को ज़मीन पर रखते ही सामने के घर से नो दस साल की एक छोटी लड़की मालिनी दौड़ती हुई वहा पर पहुंची और उसके सामने खड़ी हो गई।
मेरी मां ने कहा है, ज़रा हमारे यहां भी आ जाना। माटी वाली ने कहा आती हूं
घर कि मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी को कच्चे आंगन में उंडेल देने को कह दिया ओर कहा तू बहुत भाग्यवान है चाय के टाइम पर आई हैं हमारे घर, भाग्यवान आए खाते वक्त। वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियां लेकर आई और रोटियां माटी वाली को देकर वह फिर अपनी रसोई में चली गई। माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं था। घर कि मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर उधर तेज निगाह दौड़ाई। हा, इस वक्त वह अकेली थी उसे कोई देख नहीं रहा था उसने फौरन एक रोटी अपने पल्लू में छुपा ली।
घर कि मालकिन पीतल के एक ग्लास में चाय लेकर लौटी उसने वह ग्लास बुढ़िया के पास रख दिया और कहा ले, साग पात कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ ही खाले। चाय पीते हुए माटी वाली ने कहा चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराईन जी। भूक तो अपने में एक साग होती है भुक मीठी के भोजन मीठा।
आप अभी तक पीतल के ग्लास संभाल कर रखी है। पूरे बाज़ार में तो क्या किसी के घर में अब नहीं मिल सकते ये ग्लास। मालकिन ने कहा इनके खरीदार कई बार चक्कर काटकर लौट गए, पुरखो की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजो को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवारा नहीं करता। हमे क्या मालूम किस तरह दो दो पैसे जमा करने के बाद खरीदी होंगी ये चीज़े, जिनकी हमारे लोगो के नज़रों में कोई कीमत नहीं रह गई हैं, बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगेगा ओर ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकठ्ठा कर ले जाते है तमाम बर्तन भाड़े। कासे के बर्तन भी कम दिखते है अब घरों में।
माटी वाली ने कहा इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहा या तो स्टील के भाड़े दिखाई देंगे या फिर काच ओर चीनी मिट्टी के, अपनी चीज का मोह बहुत बडा होता है। में तो सोचकर पागल होती हूं कि अब इस उम्र में इस शहर को छोड़कर हम कहा जाए।
चाय खत्म कर उसने अपने घटरी ओर कंटर उठाया और सामने के घर में चलीं गई।
उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी लाने के आदेश के साथ उसे दो रोटियां मिल गई अने भी उसने अपने पल्लू में छुपा लिया। लोग जानते थे कि वह ये रोटियां अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है। उसके घर पहुंचते ही अशक्त बुढ़धा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है। वह घर में रसोई बनने का इंतजार करने लगता है। आज वह घर पहुंचते ही तीन रोटियां अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी। रोटियां देखकर चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का।
उसका गांव शहर से इतना पास भी नहीं है। कितनी ही तेज चलो फिर भी आधा घंटा तो पहुंचने में लग ही जाता है। रोज़ सुबह निकल जाती हैं वह अपने घर से, पूरा दिन मिट्टी की खदान से मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक पहुंचाने में लग जाता है। घर पहुंचने से पहले रात घिरने लगती है। उसके पास अपना कोई खेत नहीं। ज़मीन का एक भी टुकड़ा नहीं। झोपडी , जिसमें वह गुज़ारा करती है। जिस ज़मीन पर उसकी झोपडी है वह ज़मीन भी एक ठाकुर कि है जिसके बदले में उसे ठाकुर के घर के कई काम करने पड़ते है।
आज वह अपनी बुड्ढे को कोरी रोटियां नहीं देगी। माटी बेचने से जो आमदनी हुई उससे उसने एक पाव प्याज खरीदली। प्याज को कूटकर वह उन्हें जल्दी जल्दी तल लेगी। बुड्ढे को पहले रोटियां दिखाएगी ही नहीं। सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियां। यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई पहुंच गई अपने घर।
उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रही। माटी वाली के पावों की आहट सुनकर वह चोंका नहीं। उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाई। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छू कर देखा। वह अपनी माटी वाली को छोड़कर जा चुका था।
इधर टिहरी बांध पूरी तरह बन कर तेयार हो चुका था। बांध के पुनर्वास साहब ने उससे पूछा कि वह कहा रहती है। साहब -तुम तहसील से अपने घर का प्रमाण पत्र ले आना।
माटीवाली - मेरी ज़िन्दगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुजार गई साब।
साहब- माटी कहा से लाती हो
माटीवाली- माटा खान से लाती हूं
साहब - अगर वह माटा खान तेरे नाम है तो हम तेरा नाम लिख लेंगे।
माटीवाली- माटा खान तो मेरी रोज़ी है साहब।
साहब - बुढ़िया हमे ज़मीन के काग़ज़ चाहिए रोज़ी के नहीं।
माटी वाली- बांध खुलने के बाद में क्या करूंगी साहब?
साहब - इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते यह बात तो तुझे खुद तय करनी पड़ेगी।
बांध कि दो सुरंगों को खोल दिया गया है। शहरक्मे पानी भरने लगा है। शहर में अपाधाप मची है। शरवासी अपने घरों को छोड़कर वहा से भागने लगे। पानी भर जाने से पहले कुल शमशान घाट डूब गए है।
माटी वाली अपने झोपडी के बाहर बैठी है। गांव के हर आने जाने वाले से वह एक ही बात कहती जा रही है - गरीब आदमी का शमशान नहीं उजाड़ना चाहिए।
घर कि मालकिन ने माटी वाली को अपने कंटर की माटी को कच्चे आंगन में उंडेल देने को कह दिया ओर कहा तू बहुत भाग्यवान है चाय के टाइम पर आई हैं हमारे घर, भाग्यवान आए खाते वक्त। वह अपनी रसोई में गई और दो रोटियां लेकर आई और रोटियां माटी वाली को देकर वह फिर अपनी रसोई में चली गई। माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे ज़्यादा सोचने का वक्त नहीं था। घर कि मालकिन के अंदर जाते ही माटी वाली ने इधर उधर तेज निगाह दौड़ाई। हा, इस वक्त वह अकेली थी उसे कोई देख नहीं रहा था उसने फौरन एक रोटी अपने पल्लू में छुपा ली।
घर कि मालकिन पीतल के एक ग्लास में चाय लेकर लौटी उसने वह ग्लास बुढ़िया के पास रख दिया और कहा ले, साग पात कुछ है नहीं अभी इसी चाय के साथ ही खाले। चाय पीते हुए माटी वाली ने कहा चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है ठकुराईन जी। भूक तो अपने में एक साग होती है भुक मीठी के भोजन मीठा।
आप अभी तक पीतल के ग्लास संभाल कर रखी है। पूरे बाज़ार में तो क्या किसी के घर में अब नहीं मिल सकते ये ग्लास। मालकिन ने कहा इनके खरीदार कई बार चक्कर काटकर लौट गए, पुरखो की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजो को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवारा नहीं करता। हमे क्या मालूम किस तरह दो दो पैसे जमा करने के बाद खरीदी होंगी ये चीज़े, जिनकी हमारे लोगो के नज़रों में कोई कीमत नहीं रह गई हैं, बाज़ार में जाकर पीतल का भाव पूछो ज़रा, दाम सुनकर दिमाग चकराने लगेगा ओर ये व्यापारी हमारे घरों से हराम के भाव इकठ्ठा कर ले जाते है तमाम बर्तन भाड़े। कासे के बर्तन भी कम दिखते है अब घरों में।
माटी वाली ने कहा इतनी लंबी बात नहीं सोचते बाकी लोग अब जिस घर में जाओ वहा या तो स्टील के भाड़े दिखाई देंगे या फिर काच ओर चीनी मिट्टी के, अपनी चीज का मोह बहुत बडा होता है। में तो सोचकर पागल होती हूं कि अब इस उम्र में इस शहर को छोड़कर हम कहा जाए।
चाय खत्म कर उसने अपने घटरी ओर कंटर उठाया और सामने के घर में चलीं गई।
उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी लाने के आदेश के साथ उसे दो रोटियां मिल गई अने भी उसने अपने पल्लू में छुपा लिया। लोग जानते थे कि वह ये रोटियां अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है। उसके घर पहुंचते ही अशक्त बुढ़धा कातर नज़रों से उसकी ओर देखने लगता है। वह घर में रसोई बनने का इंतजार करने लगता है। आज वह घर पहुंचते ही तीन रोटियां अपने बुड्ढे के हवाले कर देगी। रोटियां देखकर चेहरा खिल उठेगा बुड्ढे का।
उसका गांव शहर से इतना पास भी नहीं है। कितनी ही तेज चलो फिर भी आधा घंटा तो पहुंचने में लग ही जाता है। रोज़ सुबह निकल जाती हैं वह अपने घर से, पूरा दिन मिट्टी की खदान से मिट्टी खोदने, फिर विभिन्न स्थानों में फैले घरों तक पहुंचाने में लग जाता है। घर पहुंचने से पहले रात घिरने लगती है। उसके पास अपना कोई खेत नहीं। ज़मीन का एक भी टुकड़ा नहीं। झोपडी , जिसमें वह गुज़ारा करती है। जिस ज़मीन पर उसकी झोपडी है वह ज़मीन भी एक ठाकुर कि है जिसके बदले में उसे ठाकुर के घर के कई काम करने पड़ते है।
आज वह अपनी बुड्ढे को कोरी रोटियां नहीं देगी। माटी बेचने से जो आमदनी हुई उससे उसने एक पाव प्याज खरीदली। प्याज को कूटकर वह उन्हें जल्दी जल्दी तल लेगी। बुड्ढे को पहले रोटियां दिखाएगी ही नहीं। सब्जी तैयार होते ही परोस देगी उसके सामने दो रोटियां। यह सब सोचती, हिसाब लगाती हुई पहुंच गई अपने घर।
उसके बुड्ढे को अब रोटी की कोई ज़रूरत नहीं रही। माटी वाली के पावों की आहट सुनकर वह चोंका नहीं। उसने अपनी नज़रें उसकी ओर नहीं घुमाई। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छू कर देखा। वह अपनी माटी वाली को छोड़कर जा चुका था।
इधर टिहरी बांध पूरी तरह बन कर तेयार हो चुका था। बांध के पुनर्वास साहब ने उससे पूछा कि वह कहा रहती है। साहब -तुम तहसील से अपने घर का प्रमाण पत्र ले आना।
माटीवाली - मेरी ज़िन्दगी तो इस शहर के तमाम घरों में माटी देते गुजार गई साब।
साहब- माटी कहा से लाती हो
माटीवाली- माटा खान से लाती हूं
साहब - अगर वह माटा खान तेरे नाम है तो हम तेरा नाम लिख लेंगे।
माटीवाली- माटा खान तो मेरी रोज़ी है साहब।
साहब - बुढ़िया हमे ज़मीन के काग़ज़ चाहिए रोज़ी के नहीं।
माटी वाली- बांध खुलने के बाद में क्या करूंगी साहब?
साहब - इस बात का फैसला तो हम नहीं कर सकते यह बात तो तुझे खुद तय करनी पड़ेगी।
बांध कि दो सुरंगों को खोल दिया गया है। शहरक्मे पानी भरने लगा है। शहर में अपाधाप मची है। शरवासी अपने घरों को छोड़कर वहा से भागने लगे। पानी भर जाने से पहले कुल शमशान घाट डूब गए है।
माटी वाली अपने झोपडी के बाहर बैठी है। गांव के हर आने जाने वाले से वह एक ही बात कहती जा रही है - गरीब आदमी का शमशान नहीं उजाड़ना चाहिए।
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