माटी वाली की सफलता
एक शहर में एक औरत रहती थी जिसका नाम सलजान था ओर उसका एक बेटा भी था जिसका नाम मुनीर था। वह मिट्टी के खिलौने, बर्तन, मटके आदि बनाकर बेचते थे और उससे जो मुनाफा होता था उससे वह अपना लालन पालन करते थे।शहर का सबसे गरीब घर सलजान का था। गांव के बच्चों को स्कूल जाते देख मुनीर की भी इच्छा होती की वह भी स्कूल जाए किन्तु घर की ऐसी हालत की वजह से सलजान उसे स्कूल ना भेजती ओर शहर में कोई सस्ता स्कूल भी नहीं था। मुनीर हर वक्त अपनी मा से कहता कि मां मुझे भी स्कूल जाना है पर वह उससे कहती हा तुम एक दिन स्कूल जरूर जाओगे।
एक दिन सलजान ने मुनीर से कहा कि मे तुम्हारा दाखला स्कूल में करवा दूंगी लेकिन इसके बदले तुम्हे मेरी कामो में मदद करनी होगी। मुनीर इस बात से राज़ी हो गया ओर स्कूल जाने लगा, स्कूल में सब उसका मज़ाक उड़ाते थे पर वह उं बातों पर ध्यान नहीं देता था। मुनीर सुबह से स्कूल जाता ओर दोपहर को वापिस आया ओर खाना कहा कर अपनी मा की मदद करता।
एक दिन उसके में में खयाल आया ओर उसने अपनी मा से कहा - मा हम कब तक यूहीं बर्तन बेचेंगे क्यु न हम मिट्टी की नई आकृतियों के समान बनाकर उन्हें बाज़ार में अच्छे दाम पर बेचे। पहले तो सलजां ने माना कर दिया फिर वह मां गई।
दोनों ने खूब मेहनत कर नए तरह के बास, मटके, ओर अन्य कई चीज़े बनाई। दूसरे दिन मुनीर स्कूल से लौटकर उन्हें बाज़ार में बेचने ले गया ओर उससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ उनकी बनाई चीज़े लोगो को बहुत पसंद आने लगी इस तरह दोनों नई तरह की आकृतियों का सामान बनाते ओर उन्हें बाजार में अच्छे दामो पर बेचते धीरे उनके पास बहुत सा धन इकट्ठा हो गया ओर वह भी एक धनी इंसान बन गए ओर उन्होंने एक अच्छा सा घर खरीद लिया। दोनों नई तरह कि आकृतियों बनाते ओर बेचकर मुनाफा कमाते थे ओर खुशी खुशी अपनी ज़िंदगी बिताते थे।
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